Jharkhand Foundation Day: झारखंड आंदोलन का वो प्रमुख चेहरा, जिसकी कप्तानी में देश ने जीता पहला ओलंपिक गोल्ड

Jharkhand Foundation Day: साल 2000 में आज के दिन भारत के नक्शे में एक नए राज्य का जन्म हुआ था.  

Written by - Lalit Mohan Belwal | Last Updated : Nov 15, 2021, 08:36 AM IST
  • आज मनाया जा रहा है झारखंड स्थापना दिवस
  • लंबे संघर्ष के बाद नए राज्य की मांग हुई थी पूरी
Jharkhand Foundation Day: झारखंड आंदोलन का वो प्रमुख चेहरा, जिसकी कप्तानी में देश ने जीता पहला ओलंपिक गोल्ड

नई दिल्लीः Jharkhand Foundation Day: छोटा नागपुर पठार और इसके आसपास के इलाके में आज हर कोई खुश था. कोई दीये जला रहा था तो कोई किसी को मिठाई खिला रहा था. अनगिनत संघर्षों के बाद उनकी वर्षों पुरानी मांग पूरी हुई थी. मांग एक नए राज्य की, अपने लोगों की बेहतरी की और अपनी संस्कृति को सहेजने की. 

इस दिन भारत के नक्शे में एक नए राज्य का जन्म हुआ था, जिसका नाम था 'झारखंड' और वो दिन था 15 नवंबर का. साल 2000 का यह दिन इतना खास था कि इसे अब हर साल याद किया जाना था. क्योंकि इस दिन तमाम लोगों का सपना जो साकार हुआ था. तो आज हम भी इस दिन को झारखंड स्थापना दिवस के तौर पर याद कर रहे हैं. और आपको बता रहे हैं झारखंड आंदोलन के प्रमुख चेहरे के बारे में, जो न सिर्फ राजनेता रहे, बल्कि अपने जमाने के मशहूर खिलाड़ी भी थे. उनका नाम था जयपाल सिंह मुंडा.

आदिवासी महानायक कहलाए मुंडा
मरांग गोमके यानी ग्रेट लीडर के नाम से लोकप्रिय जयपाल सिंह मुंडा की सोच और संघर्ष का ही नतीजा था कि अलग राज्य की मांग ने जोर पकड़ा. उन्होंने साल 1938 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन किया और आदिवासियों के शोषण के खिलाफ राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ी.

उन्हें आदिवासी महानायक कहा जाने लगा. वह झारखंड आंदोलन को धार दे रहे थे. 50 का दशक आते-आते उन्होंने झारखंड पार्टी की स्थापना की. पहले आम चुनाव में उनकी पार्टी ने आदिवासी इलाकों में दमदार उपस्थिति भी दर्ज कराई. यही नहीं 1950 के दशक में झारखंड पार्टी ने बिहार में प्रमुख विपक्षी पार्टी की भी भूमिका निभाई. पर धीरे-धीरे उनकी पार्टी की लोकप्रियता कम होने लगी. 

इसके बाद उन्होंने अपने सहयोगियों से बिना विचार विमर्श किए 1963 में कांग्रेस के साथ विलय कर लिया. तब एनई होरे ने आंदोलन को नई दिशा दी. उन्होंने पार्टी की दोबारा स्थापना की. फिर बाद शिबू सोरेन और बागुन सुंब्रुई जैसे चेहरों ने झारखंड आंदोलन को परिणति तक पहुंचाया.

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हॉकी टीम के कप्तान थे जयपाल सिंह
झारखंड की मुंडा जनजाति से आने वाले जयपाल सिंह पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद और खिलाड़ी भी थे. जयपाल अबुआ सकम के संपादक रहे. वह संविधान सभा के सदस्य और 1952 से 1970 तक सांसद रहे. जैसा कि हमने शुरू में बताया कि जयपाल मशहूर खिलाड़ी थे. तो बता दें कि वह हॉकी इतिहास के सबसे स्वर्णिम समय में टीम के कप्तान रहे. उनकी कप्तानी में देश ने पहली बार साल 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में हॉकी में गोल्ड मेडल जीता. मगर उन्होंने ब्रिटिश सरकार के रवैये के चलते हॉकी खेलना छोड़ दिया और राजनीति में एंट्री की.

पढ़ाई में थे काफी अच्छे
जयपाल पढ़ाई में भी काफी अच्छे थे. उनकी शुरुआती पढ़ाई रांची के सेंट पॉल स्कूल में हुई थी. उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनके प्राचार्य ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया. यहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमए किया. उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस एग्जाम भी पास किया था, लेकिन उन्होंने इसकी ट्रेनिंग नहीं की. 3 जनवरी 1903 को पैदा हुए जयपाल सिंह 20 मार्च 1970 को इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए.

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