Indo Pak War 1971: पाक सैनिकों के काल बने इयान कारडोजो ने खुखरी से क्यों काट दिया था अपना पैर

Indo Pak War 1971: भारत ने आज ही के दिन 1971 में पाकिस्तान को युद्ध में करारी मात दी थी. 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. जानिए भारत-पाक युद्ध के हीरो रहे मेजर जनरल इयान कारडोजो के बारे मेंः

Written by - Lalit Mohan Belwal | Last Updated : Dec 16, 2021, 08:01 AM IST
  • 16 दिसंबर 1971 को भारत ने पाक को युद्ध में हराया था
  • गोरखा सैनिकों के साहस के आगे पस्त पड़ गया था पाक
Indo Pak War 1971: पाक सैनिकों के काल बने इयान कारडोजो ने खुखरी से क्यों काट दिया था अपना पैर

नई दिल्लीः Indo Pak War 1971: फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ कहते थे, 'अगर कोई कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता है या तो वो झूठ बोल रहा या वो गोरखा है.' शायद सैम मानकेशॉ के दिमाग ये बात मेजर जनरल इयान कारडोजो जैसे जवानों को देखकर ही आई होगी. साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के हीरो रहे इयान कारडोजो (Ian Cardozo) की बहादुरी के किस्से किसी में भी जोश भरने के लिए काफी हैं. यह उनका युद्धकौशल ही था कि छोटी सी 5/4 गोरखा बटालियन ने पाकिस्तान की 2 ब्रिगेड को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था. वह इतने हिम्मती थे कि घायल होने पर उन्होंने खुखरी से खुद अपना पैर काट दिया था.

3 दिसंबर को शुरू हुआ था भारत-पाक युद्ध
3 दिसंबर 1971 को शुरू हुआ भारत-पाक युद्ध अपने चरम पर था. 5/4 गोरखा बटालियन अतग्राम में पाकिस्तान को शिकस्त देकर अभी आराम कर ही रही थी कि 7 दिसंबर को ब्रिगेड मुख्यालय से बटालियन को सिलहट जीतने की जिम्मेदारी दे दी जाती है. 

दरअसल, कोर कमांडर जनरल सगत सिंह को सूचना मिली थी कि पाकिस्तान की 202 इंफेंट्री ब्रिगेड को सिलहट से हटाकर ढाका भेज दिया गया है. सिलहट पर कब्जे का ये मौका भारतीय सेना हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी. 

तभी बिना समय गंवाए सेना का हेलीबॉर्न ऑपरेशन शुरू होता है. इसमें 5/4 गोरखा बटालियन के जवानों को हेलीकॉप्टर से नीचे सिलहट में उतारा जाता है. दिलचस्प यह कि इन जवानों को पहले कभी हेलीबॉर्न ऑपरेशन की ट्रेनिंग नहीं दी गई थी. 

सिलहट में तैनात थी 202 इंफेंट्री बटालियन
भारतीय सैनिकों को झटका तब लगता है जब हेलीकॉप्टर से जवानों की पहली टुकड़ी सिलहट में उतरती है. पता चलता है कि 202 इंफेंट्री बटालियन कहीं गई ही नहीं थी. यानी जनरल सगत सिंह को गलत सूचना मिली थी. मुश्किलें तब और बढ़ जाती है जब नीचे उतरने के बाद पाक सैनिक हमला बोल देते हैं और पहली खेप में आए सैनिकों के पास ब्रिगेड कमांडर को बताने के लिए रेडियो सेट भी नहीं होता है. 

पाक सैनिकों के हमले से बचने के लिए सारे जवान जमीन पर लेट जाते हैं. जैसे ही दुश्मन नजदीक पहुंचता है तो वे उन पर अपनी खुखरियों से हमला कर देते हैं. इससे पाक सैनिक भाग खड़े होते हैं.

384 जवानों के सामने थे 8 हजार पाक सैनिक
गोरखा सैनिकों के लिए अभी मुश्किलें और बढ़ने वाली थीं, क्योंकि सिलहट में पाकिस्तान की 313 इंफेंट्री ब्रिगेड भी मौजूद थी, जिसके बारे में उन्हें पता ही नहीं था. यानी एक छोटी सी बटालियन, जिसमें अतग्राम की लड़ाई के बाद 384 सैनिक बचे थे, उन्हें पाकिस्तान की दो ब्रिगेड से लोहा लेना था, जिनमें करीब 8 हजार जवान थे.

दो दिन तक मोर्चे पर डटे जवानों को कहा गया था कि उनकी मदद के लिए बड़ी बटालियन भेजी जाएगी. लेकिन, ऐसा हो नहीं सका. आलम यह था कि गोरखा सैनिकों का खाना-पानी खत्म होने लगा था. हथियार भी धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे. 

बीबीसी की चूक से मिला फायदा
तभी युद्ध की कवरेज कर रहे बीबीसी के संवाददाता से चूक हो जाती है. वह अपने प्रसारण के दौरान गलती से कह देते हैं कि भारत ने सिलहट में अपनी ब्रिगेड उतार दी है. चूंकि बीबीसी उस समय एकमात्र भरोसेमंद प्रसारक था तो इसे भारत और पाकिस्तान दोनों के सैन्य अधिकारी गंभीरता से सुनते थे.

तभी इयान कारडोजो अपनी रणनीति तैयार करते हैं. उन्हें पता था कि यह रेडियो प्रसारण पाकिस्तान ने भी जरूर सुना होगा. इसके बाद गोरखा सैनिकों की डिफेंस पोजिशनिंग इस तरह की जाती है मानो सामने एक बड़ी ब्रिगेड खड़ी हो. भारतीय सैनिक बड़े इलाके में दूर-दूर खड़े हो गए थे. एक ऊंचा टीला भी भारत ने कब्जा लिया था, ताकि पाक को इस बारे में पता न चले. 

16 दिसंबर को पाक सैनिकों ने किया सरेंडर
बीच-बीच में भारतीय विमानों की मदद से पाक सैनिकों पर हमले किए जाते. गोरखाओं की सक्रिय गश्त, घात लगाकर किए जा रहे हमलों से पाकिस्तान के हौसले पस्त होने लगे थे. 15 दिसंबर की सुबह सैम मानेकशॉ ने पाक सैनिकों से सरेंडर को कहा. इसके बाद 16 दिसंबर को पाक सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया. 

यह गोरखा सैनिकों की बहादुरी ही थी कि उनकी छोटी सी बटालियन ने पाकिस्तान के 3 ब्रिगेडियर, 107 सैन्य अधिकारी, 290 जूनियर कमीशंड ऑफिसर और 8 हजार सैनिकों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया. वहीं, सिलहट में गोरखा बटालियन के 4 अफसरों, 3 जेसीओ और 123 जवानों ने शहादत दी.

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बारूदी सुरंग पर पड़ा कारडोजो का पैर
उधर, पाकिस्तानी सैनिकों की इतनी तादाद में सरेंडर देखकर सीमा सुरक्षा बल के एक कमांडर ने मदद मांगी. उनकी मदद के लिए इयान कारडोजो दो गोरखा सैनिकों के साथ गए, लेकिन तभी इयान का पैर पाक की तरफ से बिछाई गए बारूदी सुरंग पर पड़ता है. उनके पैर क्षत विक्षत हो जाता है. बेहोश हुए कारडोजो को अस्पताल ले जाया जाता है. 

होश आने पर दर्द से कराह रहे कारडोजो डॉक्टर से मॉरफीन मांगते हैं, लेकिन सभी दवाइयां खत्म हो चुकी होती हैं. ऐसे में कारडोजो अपने साथी गोरखा सैनिक से इसे काटने के लिए कहते हैं. वह मना कर देता है. इसके बाद कारडोजो खुखरी से अपना पैर का काटकर अलग कर देते हैं. 

भाग्यवश सरेंडर किए हुए जवानों में पाकिस्तानी सर्जन मोहम्मद बशीर रहते हैं. वह बाद में इयान कारडोजो का ऑपरेशन करते हैं. सफल ऑपरेशन के बाद कारडोजो को कृत्रिम पैर लगाया गया. बाद में उन्होंने बटालियन और ब्रिगेड का नेतृत्व किया और रिटायर हुए. इयान अभी 84 वर्ष के हैं.  

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