असहनीय दर्द, बहता रहा खून, जज्बा ऐसा कि पाकिस्तान में घुसकर खोद डाली 60 टैंकों की कब्र

India Pakistan War 1965, A B Tarapore: तारापोर अकेले ही पैटन टैंकों की कब्र खोदने के लिए काफी थे. जख्मी होने के बाद भी उन्होंने 60 पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया था. 61वां पैटन टैंक उनके निशाने पर था कि तभी एक गोला उनके टैंक पर आ गिरा और जोरदार धमाका हुआ.   

Written by - Lalit Mohan Belwal | Last Updated : Sep 16, 2021, 08:23 AM IST
  • 16 सितंबर 1965 को ए बी तारापोर ने दिया था सर्वोच्च बलिदान
  • मातृभूमि पर कुर्बान होने वाले तारापोर वीरता की मिसाल थे
असहनीय दर्द, बहता रहा खून, जज्बा ऐसा कि पाकिस्तान में घुसकर खोद डाली 60 टैंकों की कब्र

नई दिल्लीः India Pakistan War 1965, A B Tarapore: 1965 का भारत-पाक युद्ध (India Pakistan War 1965), टैंकों के दम पर दो मुल्कों के बीच का ऐसा भीषण आमना-सामना था, जिसमें पाकिस्तान (Pakistan) के पास शक्तिशाली अमेरिकी पैटन टैंक (Patton Tank) थे. इनके दम पर जीत का ख्वाब पाले पाकिस्तान के टैंक और नापाक इरादे दोनों भारतीय सेना के जांबाजों ने तबाह किए. इस युद्ध का जिक्र जब भी आता है तो एक नाम सहसा याद आ जाता है. वह है लेफ्टिनेंट कर्नल ए बी तारापोर का (A B Tarapore). आज उनके जिक्र की खास वजह है. 16 सितंबर वही दिन है, जब उन्होंने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था.

वजीराली पर किया कब्जा
पूना हॉर्स रेजिमेंट ( Poona Horse regiment) की 17 हॉर्स के कमांडिंग ऑफिसर अर्देशिर बुर्जोरजी तारापोर (Ardeshir Burzorji Tarapore) को 11 सितंबर 1965 को सियालकोट सेक्टर में फिलोरा (Battle of Phillora) जीतने का आदेश मिला था.

सियालकोट सेक्टर, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है. वह अपने सिपाहियों के साथ चविंडा (Chawinda) की तरफ बढ़ रहे थे. तभी वजीराली की ओर से पाकिस्तान ने हमला कर दिया. तारापोर की टुकड़ी ने तुरंत मोर्चा संभाला और भारत के सेंचुरियन टैंकों (Centurion Tank) से अपराजेय समझे जाने वाले पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नेस्तनाबूद करना शुरू किया. भारतीय सेना ने वजीराली पर कब्जा कर लिया, लेकिन लेफ्टिनेंट कर्नल तारापोर जख्मी हो गए थे. उनके शरीर से खून निकल रहा था और उन्हें बहुत अधिक दर्द हो रहा था.

टैंक के क्यूपोला से बाहर निकलकर कर रहे थे नेतृत्व
इसके बाद भी तारापोर नहीं रुके. उनके नेतृत्व में भारतीय टैंकों का बेड़ा आगे बढ़ रहा था. अगला लक्ष्य चाविंडा था. बताया जाता है कि तारापोर अपने सिपाहियों का हौसला बढ़ाने के लिए अपने टैंक के क्यूपोला (Cupola) से चेहरा बाहर करके खड़े हो गए.

उन्हें देखकर सभी टैंकों के कमांडर भी अपने क्यूपोला से चेहरा बाहर कर आगे बढ़ने लगे. टैंकों की गर्जना, धूल, धुएं और बारूद के गुबार के बीच सेंचुरियन टैंक एक-एक करके पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर रहे थे. तारापोर की रणनीति थी कि पैटन टैंकों के सबसे कमजोर हिस्से पर हमला कर उसे तबाह करो और आगे बढ़ो. 

एक-एक कर नष्ट कर डाले पैटन टैंक
तारापोर की कुशल युद्धनीति से पाकिस्तानी खेमे में अफरातफरी मच गई. उन्हें संभलने का मौका नहीं मिल रहा था. तभी दुश्मन सैनिकों ने एकजुट होकर तारापोर को निशाना बनाना शुरू किया. उनका लक्ष्य कमांडिंग ऑफिसर को घेरना था. दरअसल, तारापोर अकेले ही पैटन टैंकों की कब्र खोदने के लिए काफी थे.

जख्मी होने के बाद भी उन्होंने 60 पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया था. 61वां पैटन टैंक उनके निशाने पर था कि तभी एक गोला उनके टैंक पर आ गिरा. जोरदार धमाका हुआ और टैंक में आग लग गई. मातृभूमि के वीर योद्धा ने उसकी रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया.

गोलों के बीच युद्धभूमि में हुआ अंतिम संस्कार
ए बी तारापोर का अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के मुताबिक वहीं युद्धभूमि में किया गया. दरअसल, उन्होंने अपने साथी मेजर चीमा से कहा था कि अगर वह शहीद हो जाते हैं तो उनका अंतिम संस्कार युद्धभूमि में ही किया जाए. अपने कमांडिंग ऑफिसर की बात मानते हुए उनके साथियों ने टैंकों के हमलों के बीच उन्हें अंतिम यात्रा पर विदा किया. 

परमवीर चक्र से किया गया सम्मानित
लेफ्टिनेंट कर्नल ए बी तारापोर को उनके अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

ए बी तारापोर का जन्म 18 अगस्त 1923 को मुंबई में हुआ था. वह 1942 में हैदराबाद सेना में शामिल हुए. उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में भी वीरता का प्रदर्शन किया था. आजादी के बाद उन्हें भारतीय सेना की पूना हॉर्स रेजिमेंट में भेज दिया गया. 

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