UP में जाति आधारित रैलियों पर लगेगी पाबंदी? अदालत ने सरकार और EC को दिया ये निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने जाति आधारित रैलियों पर पाबंदी लगाने की याचिका पर सरकार और चुनाव आयोग को हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 17, 2023, 11:01 PM IST
  • जाति आधारित रैलियों पर पाबंदी लगाने की याचिका
  • अदालत ने सरकार और चुनाव आयोग को दिया निर्देश
UP में जाति आधारित रैलियों पर लगेगी पाबंदी? अदालत ने सरकार और EC को दिया ये निर्देश

नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ ने मंगलवार को केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार तथा मुख्य चुनाव आयुक्त को राज्य में जाति आधारित रैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आग्रह वाली जनहित याचिका पर चार सप्ताह के अंदर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.

जाति आधारित रैलियों पर हमेशा के लिए लगेगा प्रतिबंध?
पीठ ने याचिकाकर्ता को उत्तरदाताओं द्वारा दाखिल किए जाने वाले प्रति-शपथपत्र पर प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है. अदालत ने अगली सुनवाई के लिए छह सप्ताह के बाद मामले को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है.

जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने 2013 में मोतीलाल यादव द्वारा दायर एक पुरानी जनहित याचिका याचिका पर आदेश पारित किया. पीठ ने इससे पहले उत्तर प्रदेश की चार प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था कि क्यों न राज्य में जाति आधारित रैलियों पर हमेशा के लिए पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाए.

रैलियां करने वालों के खिलाफ क्यों नहीं करनी चाहिए कार्रवाई?
पीठ ने मुख्य चुनाव आयुक्त से यह भी पूछा था कि आयोग को जाति आधारित रैलियां करने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए? पीठ ने 11 जुलाई, 2013 को जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों के आयोजन पर अंतरिम रोक लगा दी थी.

पीठ ने मामले में अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए मुख्य राजनीतिक दलों - भाजपा, समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस को भी नोटिस जारी किया था. अदालत ने 2013 में पारित अपने आदेश में कहा था, 'जाति आधारित रैलियों को आयोजित करने की अप्रतिबंधित स्वतंत्रता, जो कि पूरी तरह से नापसंद है और आधुनिक पीढ़ी की समझ से परे है और सार्वजनिक हित के विपरीत भी है, को उचित नहीं ठहराया जा सकता है. बल्कि यह कानून के शासन को नकारने और नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित रखने के समान है.'

'राजनीतिक दलों ने सामाजिक ताने-बाने और सामंजस्य को बिगाड़ा'
खंडपीठ ने यह भी कहा था, 'राजनीतिकरण के माध्यम से जाति व्यवस्था में राजनीतिक आधार तलाशने के अपने प्रयास में ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक दलों ने सामाजिक ताने-बाने और सामंजस्य को बिगाड़ दिया है. इसके बजाय इसके परिणामस्वरूप सामाजिक विखंडन हुआ है.'

याचिकाकर्ता ने कहा कि बहुसंख्यक वर्गो के मतदाताओं को लुभाने के लिए बनायी गई राजनीतिक पार्टियों की ऐसी अलोकतांत्रिक गतिविधियों के कारण देश में जातीय अल्पसंख्यक अपने ही देश में द्वितीय श्रेणी के नागरिकों की श्रेणी में आ गए हैं.
(इनपुट: भाषा)

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