Uttarakhand Election: उत्तराखंड में कम पड़े वोट, जानिए कम वोटिंग में किसी पार्टी को होता है फायदा?

Uttarakhand Election: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की वोटिंग समाप्त हो गई है. पिछले चुनाव के मुकाबले सूबे में कम मतदान हुआ है. जानिए कम मतदान होने पर उत्तराखंड में किस पार्टी को फायदा होता है.

Written by - Lalit Mohan Belwal | Last Updated : Feb 15, 2022, 12:11 AM IST
  • उत्तराखंड में संपन्न हुआ मतदान
  • 10 मार्च को आएगा चुनाव रिजल्ट
Uttarakhand Election: उत्तराखंड में कम पड़े वोट, जानिए कम वोटिंग में किसी पार्टी को होता है फायदा?

नई दिल्लीः Uttarakhand Election: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की वोटिंग समाप्त हो गई है. सूबे में पांचवीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में 632 उम्मीदवार मैदान में थे. इनकी किस्मत का फैसला लगभग 82 लाख वोटरों पर था. अब तक मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों पर 62.5 प्रतिशत मतदान हुआ है.

उत्तराखंड में पिछले विधानसभा चुनाव में 65.56 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. इस हिसाब से सूबे में कम मतदान हुआ है.

कम वोटिंग में लाभ किसे?
आमतौर पर माना जाता है कि कम वोटिंग होने पर सत्ता पक्ष को लाभ होता है. जबकि अधिक मतदान होने को इस तौर पर लिया जाता है कि सत्ता पक्ष के खिलाफ लहर है. एंटी इनकम्बेंसी के चलते मतदान अधिक हुआ है. लेकिन, पिछले चुनाव को देखें तो उत्तराखंड में ऐसा नहीं दिखता है.

2012 में कांग्रेस-बीजेपी को मिला था बराबर वोट
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कुल 66.85 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. तब कांग्रेस को सर्वाधिक 33.79 प्रतिशत वोट पड़ा था और उसके खाते में 32 सीटें आई थीं. वहीं, सत्तारूढ़ बीजेपी को 33.13 प्रतिशत वोट मिले थे और सीटें 31 मिली थीं.

तब केंद्र में अपनी ही पार्टी की सरकार होने का कांग्रेस को राज्य में भी फायदा हुआ और निर्दलीय व छोटे दलों की मदद से कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई.

2017 में बीजेपी ने हासिल की प्रचंड जीत
वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में 2012 के 66.85 फीसदी टर्नआउट के मुकाबले कम मतदान हुआ था. 2017 में 65.56 प्रतिशत वोट पड़ा था. कम वोटिंग के बाद भी कांग्रेस को जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा. पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस के वोट प्रतिशत में मामूली कमी हुई थी. लेकिन सीटों का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा.

2017 में कांग्रेस को 33.50 प्रतिशत वोट मिला, लेकिन उसने उत्तराखंड के इतिहास में सबसे बुरा प्रदर्शन किया और वह 11 सीटों पर सिमट गई. वहीं, बीजेपी को 46.50 प्रतिशत वोट मिला और उसने 57 सीटें अपने नाम कर ऐतिहासिक जीत हासिल की.

बीजेपी को मिला था मोदी लहर का लाभ
दरअसल, कांग्रेस को 2017 में भी लगभग उतना ही वोट मिला, लेकिन बीजेपी का वोट प्रतिशत काफी बढ़ गया. बीजेपी को बसपा और अन्य का वोट मिला. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 2017 में राज्य में मोदी लहर के चलते बसपा और अन्य को जाने वाला वोट बीजेपी को मिल गया इसलिए उसने इतनी सीटों पर जीत हासिल की.

क्या इस बार भी राज्य में है मोदी लहर?
उत्तराखंड में इस बार 2017 जैसी मोदी लहर नहीं है. दूसरा कोरोना के चलते पीएम मोदी की राज्य में अधिक रैलियां नहीं हो पाईं. बीजेपी को भी पता था कि मोदी के नाम पर वोट मिलेगा. इसलिए रणनीति के तहत सभी बीजेपी नेता पीएम मोदी के नाम पर वोट मांग रहे थे. यही नहीं बीजेपी ने नारा गढ़ा था, 'उत्तराखंड की पुकार, मोदी-धामी सरकार.' हालांकि, 10 मार्च को यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी मोदी का नाम लेकर जनता को कितना प्रभावित कर पाई.

क्या बीजेपी के खिलाफ है सत्ता विरोधी लहर?
अगर 2020 और 2021 की शुरुआत में कोई यह पूछता तो हर कोई इसका जवाब हां में देता. त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ न सिर्फ जनता बल्कि उनकी पार्टी तक में काफी नाराजगी थी. यही वजह रही कि बीजेपी त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को लाई. लेकिन, तीरथ सिंह रावत काम से ज्यादा अपने बड़बोलेपन के चलते विवादों में रहे. फिर बीजेपी ने युवा और नए चेहरे पुष्कर सिंह धामी को आगे किया. 

पुष्कर सिंह धामी ने भी वही किया जो एक मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में करता है. धुआंधार घोषणाएं. इनमें से कुछ पूरी हुईं तो बाकी घोषणाएं ही रह गईं. लेकिन, बोलने की बेहतर शैली, बीजेपी के केंद्रीय नेताओं का सिर पर हाथ और विज्ञापनों ने न सिर्फ धामी की छवि चमकाई बल्कि एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर भी कम हुआ.

आम आदमी पार्टी कितनी प्रभावी?
आम आदमी पार्टी कुछ सीटों पर प्रभावी दिख रही है. जानकार बता रहे हैं कि अगर 'आप' कोई सीट नहीं भी जीतती है तो भी वह कुछ सीटों पर कांग्रेस-बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती है. इसी तरह यूकेडी, छोटी पार्टियां और निर्दलीय भी कुछ सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बनते दिखे हैं. 

राज्य के राजनीतिक जानकार बताते हैं कि आप, यूकेडी, निर्दलीय लगभग 20 सीटों पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं. बाकी करीब 50 सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस में ही मुकाबला नजर आया है. मोदी लहर न होने के चलते सभी पार्टियों में वोट बंटना तय माना जा रहा है. इस स्थिति में फंसी हुई 20 सीटों को राज्य की सत्ता में आने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

2002 में हुआ था पहला विधानसभा चुनाव
आपको बता दें कि 9 नवंबर 2000 में अस्तित्व में आए उत्तराखंड में बीजेपी ने अंतरिम सरकार बनाई थी. उत्तराखंड में पहली बार 2002 में विधानसभा चुनाव हुए थे. तब राज्य में कुल 54.34 प्रतिशत वोटिंग हुई थी और कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. इसके बाद 2007 में हुए चुनाव में 59.50 प्रतिशत वोट पड़ा था और बीजेपी सत्ता में आई थी. फिर 2012 में 66.85 प्रतिशत वोटिंग हुई और कांग्रेस सरकार में आने में सफल रही.

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