नई दिल्लीः Uttarakhand Election Result 2022: उत्तराखंड में बीजेपी ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की. पार्टी राज्य में पांच साल में सरकार बदलने का मिथक तोड़ने में कामयाब रही. वहीं, कांग्रेस को लगातार दूसरे चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा. जानिए उत्तराखंड में बीजेपी की प्रचंड जीत के पांच बड़े कारणः
1. बीजेपी के काम आया मोदी ब्रांड
राज्य में बीजेपी के प्रचार अभियान में पार्टी के नेताओं का जोर मोदी के नाम पर वोट मांगने को था. यहां तक कि बीजेपी ने मोदी-धामी सरकार का नारा दिया था. बीजेपी के सभी प्रत्याशी मोदी के नाम और उनकी नीतियों पर वोट मांग रहे थे. साथ ही प्रचार के दौरान बीजेपी प्रत्याशी चाह रहे थे कि मोदी उनकी सीट पर प्रचार करने आएं. धार्मिक भावनाओं और सैन्य पृष्ठभूमि वाले इस राज्य में मोदी ब्रांड बीजेपी के काम आया.
2. मुख्यमंत्री का चेहरा बदलना रहा कारगर
त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को सीएम पद की कुर्सी सौंपने का निर्णय बीजेपी के लिए कारगर रहा. सीएम धामी काफी हद तक सत्ता विरोधी लहर को कम करने में कामयाब रहे. एक समय त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ जनता में असंतोष था. सीएम पद संभालते ही तेजी से लिए गए फैसलों, आकर्षक भाषण शैली और केंद्रीय नेतृत्व के विश्वास की बदौलत धामी ने राज्य में बीजेपी के खिलाफ उठी सत्ता विरोधी लहर को कम किया. हालांकि, धामी जरूर अपनी सीट पर चुनाव हार गए.
3. महंगाई-बेरोजगारी का मुद्दा काम नहीं आया
कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. पेट्रोल-डीजल और सिलेंडर के दाम को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी को घेरा, लेकिन चुनावी नतीजों ने साफ कर दिया कि ये मुद्दे काम नहीं आए.
4. जनता को डबल इंजन भाया
बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान इस बात पर जोर दिया कि केंद्र ने पिछले पांच साल में उत्तराखंड के लिए 1 लाख करोड़ से ज्यादा की परियोजनाओं को स्वीकृत किया. चारधाम मार्ग, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेललाइन जैसे विकास कार्यों की बात की. बीजेपी लोगों को यह संदेश देने में कामयाब रही कि डबल इंजन की सरकार में राज्य में कई विकास कार्य हुए और राज्य को आगे बढ़ाने के लिए डबल इंजन जरूरी है.
5. कांग्रेस की अंतर्कलह और भितरघात
बीजेपी को कांग्रेस की अंदरूनी कलह का भी फायदा मिला. कांग्रेस में हरीश रावत और प्रीतम सिंह के अलग-अलग गुट बने थे. दो गुटों में बंटी पार्टी में कई बार टकराव देखने को मिला. हरीश रावत खुद को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित करवाना चाहते थे. इसके लिए वह दिल्ली भी गए, हालांकि उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली. यहीं नहीं टिकट बंटवारे में भी गुटबाजी हावी रही. इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला.
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