UP Election 2022: क्या पश्चिमी यूपी में बीजेपी से वाकई छिटक गए हैं जाट या फिर सच्चाई कुछ और

पश्चिमी यूपी में दो चरणों विधानसभा चुनाव होने हैं. जाटलैंड के नाम से विख्यात इस इलाके में जाटों का प्रभुत्व है. 2014 से बीजेपी के साथ दिख रहे जाट क्या बीजेपी से छिटक रहे हैं या सच्चाई कुछ और है. जानिए सबकुछ इस रिपोर्ट मेंः

Written by - Lalit Mohan Belwal | Last Updated : Feb 14, 2022, 10:47 PM IST
  • पश्चिमी यूपी में जाट वोटों को लेकर है खींचतान
  • बीजेपी और सपा-रालोद गठबंधन में है लड़ाई
UP Election 2022: क्या पश्चिमी यूपी में बीजेपी से वाकई छिटक गए हैं जाट या फिर सच्चाई कुछ और

नई दिल्लीः UP Election 2022: क्या पश्चिमी यूपी में जाट वाकई बीजेपी से छिटक गए हैं या वो पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी बीजेपी की ठाठ कराएंगे. यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि 10 फरवरी को उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान होगा, जबकि दूसरे चरण का मतदान 14 फरवरी को होना है. दोनों ही चरण में एक समुदाय जिसकी सबसे अधिक बात हो रही है वो है जाट और दोनों चरणों में जहां मतदान होना है उस पश्चिमी यूपी के इलाके को कहा जाता है जाटलैंड.

120 सीटों पर माना जाता है प्रभाव
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का अपना प्रभुत्व है. माना जाता है कि इस क्षेत्र में जाटों की तादाद लगभग 17 प्रतिशत है. उनका प्रभाव लगभग 120 विधानसभा सीटों पर माना जाता है. दावा किया जाता है कि गाजियाबाद, सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर, अमरोहा, मेरठ आदि जिलों की कई सीटों पर जाट जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

जाटलैंड की उपज थे चौधरी चरण सिंह
जाटलैंड वही धरती है जिसने चौधरी चरण सिंह जैसा किसान नेता देश को दिया. जो न सिर्फ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, बल्कि प्रधानमंत्री बनकर देश की बागडोर भी संभाली. तो वहीं महेंद्र सिंह टिकैत भी इसी धरती की उपज हैं, जिनकी एक आवाज पर किसान इकट्ठा हो जाते थे और सरकारों की चूलें हिल जाती थीं.

अखिलेश-जयंत उठा रहे किसान-रोजगार पर सवाल
अब जब यह सर्वमान्य है कि पश्चिमी यूपी में जाटों का अपना प्रभाव है तो राजनीतिक दलों का उन पर डोरे डालना लाजिमी है. यहां समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और रालोद मुखिया जयंत चौधरी, जो चौधरी चरण सिंह के पोते हैं, पश्चिमी यूपी में एक साथ प्रचार कर चुके हैं और उनका जोर किसान, रोजगार जैसे मुद्दों पर है. वो इसके जरिए बीजेपी को घेरना चाहते हैं.

खुद अमित शाह संभाल चुके हैं कमान
वहीं, बीजेपी की तरफ से खुद गृह मंत्री अमित शाह डोर टू डोर कैंपेन करने के साथ-साथ जाट नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं. यही नहीं उन्होंने जाट नेताओं के साथ मुलाकात में कहा था कि हमने रालोद से परहेज नहीं किया. सपा के साथ जाकर रालोद को नुकसान होगा. हालांकि, इस पर रालोद प्रमुख जयंत चौधरी बोले कि हमें ऑफर मत दो. हमारे लिए किसान आंदोलन में शहीद किसानों का मुद्दा अहम है.

जाट वोटों को लेकर है खींचतान
यह साफ है कि पश्चिमी यूपी में बीजेपी और सपा-रालोद गठबंधन के बीच जाट वोटों को लेकर बड़ी खींचतान है. ऐसे में सवाल उठता है कि 'क्या जाट बीजेपी से छिटक गए हैं' यह चर्चा क्यों शुरू हुई. दरअसल, इसके पीछे की वजह किसान आंदोलन, गन्ने के भुगतान में देरी, बिजली की ऊंची दरें, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे हैं. जिनके चलते कहा जा रहा है कि जाट बीजेपी से छिटकते नजर आ रहे हैं. वहीं, सपा-रालोद गठबंधन भी जोर-शोर से इन मुद्दों को उठा रहा है.

सपा-रालोद गठबंधन को बेमेल बताने की कोशिश
हालांकि, बीजेपी जाटों को यह विश्वास दिलाने की भरपूर कोशिश कर रही है कि सपा-रालोद गठबंधन बेमेल है. कुछ हद तक इसका असर भी दिखाई पड़ रहा है. क्योंकि, पश्चिमी यूपी में ग्राउंड पर घूम रहे एक वरिष्ठ पत्रकार से जाटों का एक समूह कहता है कि हम रालोद को वोट करेंगे, लेकिन जाटों का वोट सपा को नहीं जाएगा. इसी तरह एक अन्य पत्रकार से खेत में बैठे किसानों का समूह कहता है कि जयंत चौधरी अच्छा आदमी है लेकिन उसने गलत जगह हाथ मिला लिया.

17 प्रतिशत जाट तो 27 फीसदी मुसलमान
इसके मायने यह है कि समाजवादी पार्टी का वोट तो रालोद को ट्रांसफर होता दिख रहा है, लेकिन समाजवादियों को जाट वोट कितना मिलेगा, इस पर संशय है. पश्चिमी यूपी में जहां 17 प्रतिशत जाट हैं तो 27 प्रतिशत मुसलमान है. सपा-रालोद गठबंधन की नजर इसी 43 प्रतिशत वोट बैंक पर है. जबकि बीजेपी का जोर 80 बनाम 20 पर है.

2014 से बीजेपी को जाटों ने जमकर दिया वोट
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि बीजेपी को 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में जाटों ने खुलकर वोट किया था. इसकी तस्दीक इस आंकड़े से की जाती है कि 2012 के चुनाव में जहां इस क्षेत्र में बीजेपी को 16 प्रतिशत वोट मिला था तो 2017 में 45 फीसदी वोट. वहीं, रालोद का मत प्रतिशत 11 फीसदी से घटकर 6 फीसदी पर पहुंच गया था.

मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से बदली तस्वीर
बीजेपी को जाटों का समर्थन मिलने की एक बड़ी वजह 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे को बताया जाता है, जिसके बाद से चौधरी चरण सिंह के समय से कायम जाट-मुस्लिम गठजोड़ टूटा. इससे बीजेपी को फायदा मिला और रालोद का जनाधार सिमटता गया. 2017 के विधानसभा चुनाव में नतीजा यह रहा कि रालोद सिर्फ एक सीट जीत पाई. वो भी बागपत की छपरौली सीट, जो चौधरी चरण सिंह और अजित सिंह की सीट रही है. यह विधायक भी बाद में पार्टी छोड़कर चला गया.

'जिसके जाट उसके ठाठ'
अब इस बार भी बीजेपी जाटों को अपने पाले में करने के लिए अपने विकास कार्यों से लेकर मुजफ्फरनगर दंगों तक की याद दिला रही है. खुद सीएम योगी आदित्यनाथ अपनी चुनावी रैलियों में मुजफ्फरनगर दंगों और उसमें मारे गए गौरव और सचिन का नाम ले चुके हैं. इसके जरिए वे बीजेपी से कथित रूप से नाराज जाटों को भी अपने पक्ष में करना चाहते हैं, क्योंकि 'जिसके जाट उसके ठाठ.'

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