आजम खान की विधायकी छिनने से निकाय चुनाव में सपा को होगा कितना नुकसान? जानें सारा गुणा-गणित

आजम खान की विधायकी छिनने से समाजवादी पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. आगामी निकाय चुनाव में सपा की उम्मीदों पर झटका लग सकता है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 29, 2022, 12:15 PM IST
  • आजम खान की विधायकी छिनने का असर
  • जानें कैसे बढ़ सकती हैं सपा की मुश्किलें
आजम खान की विधायकी छिनने से निकाय चुनाव में सपा को होगा कितना नुकसान? जानें सारा गुणा-गणित

नई दिल्ली: सपा के फायर ब्रांड नेता आजम खान की विधायकी जाने के बाद सपा के सामने कई मुश्किलें खड़ी हो सकती है. पश्चिमी यूपी की मुस्लिम सीटों पर उनका प्रभाव तगड़ा रहता था. उस इलाके में यह पार्टी के बड़े चेहरे के रूप में शुमार रहते हैं. हाल में होने वाले निकाय चुनाव की तैयारियों में लगी सपा के लिए यह करारा झटका माना जा रहा है.

आजम खान और सपा दोनों की मुश्किलें
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक सपा के संस्थापक सदस्यों में रहे आजम खान पार्टी का मुस्लिम चेहरा माने जाते थे. उन्होंने पार्टी में तमाम उतार-चढ़ाव देखे. पार्टी के बड़े फैसलों में उनकी सलाह अपिरहार्य मानी जाती थी. यहां तक कि वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में जब सपा को बहुमत मिला तो मुख्यमंत्री के पद पर अखिलेश की ताजपोशी के फैसले में भी वह साझेदार थे.

सपा के एक नेता का कहना है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भले ही सपा को सत्ता न मिली हो, लेकिन रामपुर व आसपास के जिलों में सपा ने कई सीटें जीतीं. माना जाता है कि आजम खान की सियासत ने इस क्षेत्र में सपा को खास तौर पर बढ़त दिलाई. रामपुर जिले की ही पांच में से तीन सीटों पर सपा को विजय मिली थी.

आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम दोनों ही चुनाव जीते. उधर, निकट के मुरादाबाद जिले में भी सपा ने पांच सीटें जीती. भाजपा को महज एक सीट ही मिल सकी. संभल में भी चार में से तीन सीटों पर सपा ने कब्जा जमाया. पश्चिमी उप्र में सपा-रालोद गठबंधन को 40 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अमोदकांत मिश्रा कहते हैं कि सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान का लम्बा राजनीतिक अनुभव बहुत मायने रखता है. वह मुलायम के कतार के नेता हैं. वह दस बार विधायक रहे हैं. उन्हें संसद के दोनों सदनों का ज्ञान है, जो पार्टी के लिए काफी महत्व रखता है. वह प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल सपा के मजबूत स्तंभ रहे हैं. अपनी तकरीरों, दलीलों के माध्यम सत्ता पक्ष निरुत्तर करने का माद्दा रखते हैं. यह बात और है कि अठारहवीं विधानसभा के बीते सात माह के दौरान आजम एक दिन भी सदन में नहीं बैठे.

मई में हुए बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण से पहले उन्होंने अपने विधायक पुत्र अब्दुल्ला आजम के साथ विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना के कक्ष में सदन की सदस्यता की शपथ ली जरूर, लेकिन कार्यवाही में अब तक शामिल नहीं हुए.

आमोद कहते हैं कि आजम खान की विधायकी चली गई है, यह उनके लिए बड़ी चुनौती है. सदन में उनकी गैरमौजूदगी तो सपा को कमजोर करेगी. आजम खान पर लगे प्रतिबंध का सपा भावनात्मक लाभ उठाने की कोशिश कर सकती है. जिस तरह बसपा फिर से मुस्लिम वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही है, यह सपा के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है. निकाय चुनाव में इसका असर साफ देखने को मिलेगा.

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