World Water Day: पानी कितना कीमती, जानिए क्या कहते हैं धर्म शास्त्र

भारतीय परंपरा की बात करें सनातन धर्म और ज्योतिष ने हमेशा ही जल के महत्व का ध्यान रखा है. इसी तरह कई ग्रंथों और पुराणों में भी जल के सम्मान की बात कही गई है.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Mar 22, 2021, 05:10 PM IST
  • लगातार नल टपकते रहने से घर में आती है नकारात्मकता
  • नदी-तालाब का जल दूषित करने पर भोगना होता है नर्क
World Water Day: पानी कितना कीमती, जानिए क्या कहते हैं धर्म शास्त्र

नई दिल्लीः जल ही जीवन है. यह सूत्र वाक्य हाल के कुछ वर्षों में सामने तब आया जब देखा गया कि इंसानी जीवन पानी के महत्व को बिल्कुल न समझते हुए इसे व्यर्थ ही बहाता आ रहा है. इस ओर बरती जा रही लगातार लापरवाही का आलम यह है कि कुएं-तालाब और बावड़ी का अस्तित्व समाप्त हो गया है और साफ पानी की किल्लत भारी मात्रा में है. इस ओर जिम्मेदारी को समझते हुए 22 मार्च को हर साल विश्व जल दिवस मनाया जाता है. 

ग्रंथों-पुराणों में है जल के सम्मान की बात
भारतीय परंपरा की बात करें सनातन धर्म और ज्योतिष ने हमेशा ही जल के महत्व का ध्यान रखा है. इसी तरह कई ग्रंथों और पुराणों में भी जल के सम्मान की बात कही गई है.

वेदों में ऋग्वेद की जिन ऋचाओं में प्रकृति पूजा की बात कही गई है उनमें जल को वरुण देव कहा गया है. यानी को जीवित प्रकृति माना गया है और इसी आधार पर उनके सम्मान की व्याख्या की गई है. 

ऋग्वेद में वर्णित है जल सूक्ति
वेदों में जल को देवता मानते हुए उन्हें आपः की संज्ञा भी दी गई है. ऋग्वेद के पूरे चार सूक्त आपः देव के लिए समर्पित हैं. ऋग्वेद प्रथम मण्डल के 23वें सूक्त के मन्त्रदृष्टा ऋषि मेघातिथि कण्व हैं. इसमें लिखा गया है कि अम्बयो यन्त्यध्वभिर्जामयो अध्वरीयताम्. पृञ्चतीर्मधुना पयः. यानी कि यज्ञ की इच्छा करने वालों (यहां इसका सीधा अर्थ मनुष्य समझना चाहिए) के सहायक मधुर रस जल-प्रवाह, माताओं की तरह हैं जो पोषण देते हैं. इन्हीं के पोषण से हम जीवित हैं और यज्ञ कर पाते हैं. 

इसी तरह एक और सूक्त अपो देवीरूप ह्वये यत्र गावः पिबन्ति नः, सिन्धुभ्यः कर्त्व हविः. का अर्थ है कि हमारी गायें जिस जल का सेवन करती हैं, उन सभी जलों का हम स्तुतिगान करते हैं. अन्तरिक्ष एवं भूमि पर प्रवहमान उन जलों के लिए हम हवि अर्पित करते हैं. इस सूक्त में शुद्ध जल की उपलब्धता की ओर प्रकाश डाला गया है. 
 
रामायण-महाभारत में भी मिलते हैं कई प्रसंग
इसके अलावा रामायण और महाभारत काल में भी कई ऐसे प्रसंग मिलते हैं जिनमें जल का महत्व तो बताया ही गया है साथ ही जल की बर्बादी रोकने के लिए भी हिदायत दी गई है. राजा भगीरथ स्वर्ग से गंगा को उतार कर लाते हैं तो यह कथा बताती है कि भारत भूमि पर पीने योग्य जल कितनी मुश्किल से आया.

तब भगीरथ ब्रह्न देव और महादेव शिव को वचन देते हैं कि वह गंगा की शुद्धता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे साथ ही इसके जल का अनुचित दोहन नहीं होने देंगे. उन्होंने ही गंगा को देवी की प्रतिष्ठा देकर उन्हें पूजनीय बनाया. 

शांति सभा में श्रीकृष्ण ने बताया था जल का महत्व
वहीं महाभारत काल में श्रीकृष्ण जब कौरवों की सभा में शांतिदूत बनकर जाते हैं तो वह कहते हैं कि महाराज धृतराष्ट्र आप इस युद्ध को रोक लीजिए. इस युद्ध से अनगिनत लोगों का रक्त बहेगा.

वह तब यह भी कहते हैं कि व्यर्थ में जल की एक बूंद बहाना भी जल का अपमान है और यहां तो रक्त का पूरा एक सागर बहाने की योजना बन रही है. इस तरह के तर्कों को देते हुए श्रीकृष्ण जहां एक तरफ युद्ध को रोक देने की कोशिश करते हैं वहीं दूसरी ओर वह पानी के महत्व को भी सामने रखते हैं. 

ज्योतिष विज्ञान और शास्त्र पर नजर डालें तो व्यर्थ पानी बहाने पर पाप लगने की बात कोरी गप्प नहीं है, बल्कि इसके कई दुष्परिणाम भुगतने होते हैं.  

पानी होता है बरबाद तो आती हैं कई मुसीबतें
ज्योतिष कहता है कि जब अचानक ही आपके खर्चे बढ़ने लगे और पैसों की किल्लत होने लगे, साथ ही हर काम में असफलता मिलने लगे तो समझिए आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो चुका है.

वास्तु और ज्योतिष में पानी की बर्बादी को गरीबी का कारण बताया गया है. यह भी कहा गया है कि जिस घर में पानी का गलत उपयोग होता है, वहां माता लक्ष्मी निवास नहीं करती हैं. 

नल टपकने से आती है नकारात्मकता
वास्तु शास्त्र के अनुसार जिन घरों में लगे नलों से अक्सर पानी टपकता रहता हो और सीलन रहती है वहां पर हमेशा धन का अभाव रहता है. शास्त्रों के अनुसार नल से लगातार पानी के टपकने की आवाज से घर पर नकारात्मक असर पड़ता है. धन की बर्बादी को रोकने के लिए समय से नलों को तुरंत ठीक करवा लेने की सलाह वास्तु देता है. 

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पाप ही जल की बरबादी
स्कंदपुराण के अनुसार- मलं मूत्रं पुरीषं च श्लेश्म: निष्ठीनाश्रु च, गण्डूषाश्चैव मुञ्चन्ति ये ते ब्रह्ममहणै: समा:. यानी कि जो मनुष्य नदी, तालाब या कुंओं के जल में मल-मूत्र, थूक, कुल्ला करते हैं या उसमें कचरा फेंकते हैं, उनको ब्रह्महत्या का पाप लगता है. साथ ही ऐसे लोग कभी संपन्न नहीं होते. 

अंजुलि में भरकर जल पीना निषेध
पानी की एक-एक बूंद का इतना अधिक महत्व है कि अंजुलि में जल लेकर पीने से भी निषेध बताया गया है. क्योंकि अंजुलि में भरकर जल पीने से वह आस-पास से गिर भी जाता है. इस संबंध में याज्ञववल्क्यस्मृति कहा गया है न वार्यञ्जलिना पिबेत. 

विश्व जल दिवस तो महज 1993 से मनाया जा रहा है, लेकिन भारतीय संस्कृति तो सदियों से भारत समेत विश्व को पानी बचाने के लिए जागरूक कर रही है. विडंबना है कि न तो भारत में ही और न ही विश्व में इस बात को अब तक समझा गया है कि पानी बिल्कुल बर्बाद नहीं करना है. पुराणों से न ही सही अभियानों से ही यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतनी बेहतर है. 

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