नई तकनीक का कमाल, पहली बार किसी महिला का HIV पूरी तरह हुआ ठीक
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नई तकनीक का कमाल, पहली बार किसी महिला का HIV पूरी तरह हुआ ठीक

एचआईवी एड्स (HIV AIDS) के इलाज में वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी मिली है और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक से एचआईवी (HIV) से संक्रमित महिला का इलाज कर दिया है, जो एचआईवी से ठीक होने वाली यह पहली महिला बन गई है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

वॉशिंगटन: एचआईवी एड्स (HIV AIDS) बहुत ही संक्रामक और जानलेवा बीमारी है, जो ह्यूमन इम्यूनो डिफिशियेंसी वायरस के संक्रमण की वजह से होती है और अब तक इसे लाइलाज माना जाता था, लेकिन इस बीच वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी मिली है और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक से एचआईवी (HIV) से संक्रमित महिला का इलाज कर दिया है.

  1. पहली बार महिला का एचआईवी हुआ ठीक
  2. इससे पहले सिर्फ 2 लोग ही हुए थे ठीक
  3. स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के जरिए किया गया इलाज

पहली बार महिला का एचआईवी हुआ ठीक

अमेरिका में एचआईवी (HIV) से संक्रमित एक महिला पूरी तरह ठीक हो गई है और एचआईवी से ठीक होने वाली यह पहली महिला बन गई है. बता दें कि अब तक दुनियाभर में सिर्फ तीन लोग ही एचआईवी से ठीक हो पाए हैं.

इससे पहले सिर्फ 2 लोग ही हुए थे ठीक

इससे पहले सिर्फ 2 लोग ही एचआईवी (HIV) से ठीक हो पाए थे. द बर्निल पेंशेंट के नाम से जाने गए टिमोथी रे ब्राउन 12 सालों तक वायरस के चंगुल से मुक्त रहे और 2020 में कैंसर से उनकी मौत हुई. वहीं साल 2019 में एचआईवी से संक्रमित एडम कैस्टिलेजो का भी सफलतापूर्वक इलाज किया गया था.

कैसे किया गया महिला का इलाज?

न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के अनुसार, शोधकर्ताओं ने बताया कि स्टेमसेल ट्रांसप्लांट (Stem Cell Transplant) के एक जरिए इस महिला का इलाज हुआ. स्टेमसेल (Stem Cell) एक ऐसे व्यक्ति ने दान किए थे, जिसके अंदर एचआईवी वायरस (HIV Virus) के खिलाफ कुदरती प्रतिरोध क्षमता थी.

स्टेमसेल ट्रांसप्लांट (Stem Cell Transplant) में अम्बिलिकल कॉर्ड (Umbilical Cord ) यानी गर्भनाल के खून का इस्तेमाल किया गया. इस तकनीक में अम्बिलिकल कॉर्ड स्टेम सेल को डोनर से ज्यादा मिलाने की भी जरूरत नहीं पड़ती है, जैसे कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट में होता है.

2013 में एचआईपी का पता चला

महिला को एचआईवी (HIV) से संक्रमित होने की जानकारी साल 2013 में मिली थी. इसके चार साल के बाद वह ल्यूकेमिया से पीड़ित हो गई. इस ब्लड कैंसर का इलाज हैप्लो-कॉर्ड ट्रांसप्लांट के जरिए किया गया, जिसमें आंशिक रूप से मेल खाने वाले डोनर से कॉर्ड ब्लड लिया गया. इस दौरान महिला के करीबी रिश्तेदार ने भी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए उसे ब्लड डोनेट किया. साल 2017 में आखिरी बार महिला का ट्रांसप्लांट किया गया और पिछले 4 सालों में वो ल्यूकेमिया से पूरी तरह ठीक हो चुकी है. ट्रांसप्लांट के 3 साल बाद डॉक्टरों ने उसके एचआईवी का इलाज भी बंद कर दिया और वो अब तक किसी वायरस की चपेट में फिर से नहीं आई है.
(इनपुट- न्यूज एजेंसी रॉयटर्स)

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