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मॉस्को: युद्ध की बढ़ती आशंका के बीच यूक्रेन (Ukraine) ने राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया है और अपने नागरिकों से जल्द से जल्द रूस छोड़ने को कहा है. वहीं, रूस (Russia) ने यूक्रेन से अपने राजनयिकों को बुलाने का ऐलान कर दिया है. अमेरिकी सहित पश्चिमी देश रूस को रोकने के लिए प्रतिबंधों का (European Sanctions) सहारा ले रहे हैं. US और UK ने मॉस्को पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं और आने वाले दिनों में कई नए बैन भी लग सकते हैं. लेकिन सवाल ये ही क्या जिद्दी रूस पर ये फ़ॉर्मूला काम करेगा?
2014 में रूस द्वारा यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा किए जाने के बाद अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों ने रूस की निंदा की थी और आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे, लेकिन रूस अभी भी क्रीमिया को नियंत्रित करता है. रूस की अर्थव्यवस्था उस दौर की मंदी से बाहर निकलकर फिर से बढ़ने लगी है. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) भी ये अच्छे से जानते हैं कि यूक्रेन पर हमले की सूरत में देश को आर्थिक नुकसान उठाना होगा, मगर इसके बावजूद वो पीछे हटते नजर नहीं आ रहे.
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‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का कुछ असर रूस पर पड़ा था. इसकी वजह से रूसी बैंकों को विदेशी कर्ज मुश्किल हो गया और पश्चिमी कंपनियों को रूसी तेल कंपनियों के साथ काम करने से प्रतिबंधित कर दिया गया. 2016 की गर्मियों तक रूस की अर्थव्यवस्था सिकुड़ती रही. रूबल का मूल्य वैश्विक बाजारों में गिर गया, जिससे कंपनियों और उपभोक्ताओं के लिए कई वस्तुओं की कीमत बढ़ गई. राष्ट्रपति पुतिन भी इस प्रभाव से अछूते नहीं रहे. क्रीमिया पर कब्जे के बाद उनकी अप्रूवल रेटिंग 80 प्रतिशत थी जो बाद के सालों में 60 तक पहुंच गई.
रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स के हवाले से बताया गया है कि प्रतिबंधों के बड़े स्तर पर असर होने के लिए कठोर प्रतिबंधों की जरूरत होती है और अमेरिका ऐसे प्रतिबंध लगाने को लेकर खुद ही कंफ्यूज है. एडवर्ड फिशमैन और क्रिस मिलर जैसे इंटरनेशल रिलेशंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस को वास्तव में दर्द देने के लिए अमेरिका और यूरोप को भी कुछ बोझ उठाना होगा और पश्चिमी देश इसके लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं.
एक्सपर्ट्स का कहना है अमेरिका को ईरान वाली नीति अपनाई चाहिए. विश्व तेल बाजारों पर संभावित प्रभाव और ईरानियों के जीवन स्तर को नुकसान होने के बावजूद, अमेरिका ने कड़े प्रतिबंध लगाए थे. इन प्रतिबंधों के कारण ईरान को परमाणु कार्यक्रम के लिए बातचीत के मेज पर लाया जा सका था. रूस के मामले में प्रतिबंधों का एक अधिक आक्रामक सेट रूसी तेल को खरीदने से इनकार करने के साथ शुरू हो सकता है, जो कि रूस का सबसे बड़े राजस्व का स्रोत है. यदि ऐसा होता है तो पुतिन को कुछ हद तक सोचने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस मौजूदा वक्त में अतिरिक्त नकदी के ढेर पर बैठा हुआ है. ऐसे में उस पर किसी भी स्तर के प्रतिबंध का असर शायद ज्यादा न हो. इसके साथ ही अमेरिका रूस पर ऐसे कोई प्रतिबंध नहीं लगाना चाहेगा जिसका असर यूक्रेन पर पड़े क्योंकि यूक्रेन की इकॉनमी पहले ही खस्ताहाल है. चीन भी इस विवाद में रूस के साथ है और इसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. अब देखने वाली बात होगी कि क्या पश्चिमी देशों के प्रतिबंध रूस को आगे बढ़ने से रोक पाते हैं?