अयादत को आए शिफ़ा हो गई मिरी रूह तन से जुदा हो गई

हँसी थमी है इन आँखों में यूँ नमी की तरह चमक उठे हैं अंधेरे भी रौशनी की तरह

अयादत होती जाती है इबादत होती जाती है मिरे मरने की देखो सब को आदत होती जाती है

यूँ तेरी रहगुज़र से दीवाना-वार गुज़रे काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे

आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता

जब ज़ुल्फ़ की कालक में घुल जाए कोई राही बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता

दिल तोड़ दिया उस ने ये कह के निगाहों से पत्थर से जो टकराए वो जाम नहीं होता

दिन डूबे है या डूबी बारात लिए कश्ती साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता

रिमझिम-रिमझिम बूंदों में, ज़हर भी है और अमृत भी आंखें हंस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली

हंस- हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकडे़ हर शख्स़ की किस्मत में ईनाम नहीं होता