हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना... राहत इंदौरी का मुरीद बना देगी ये शायरी

राज़ जो कुछ भी हो इशारों में बता भी देना, हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना

ज़ुबान तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे, मैं कितनी बार लुटा हूं मुझे हिसाब तो दे

तेरे बदन की लिखावट में है उतार-चढ़ाव, मैं तुझको कैसे पढूंगा मुझे किताब तो दे

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है, चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है

समंदरों के सफर में हवा चलाता है, जहाज़ खुद नहीं चलते खुदा चलाता है

हम अपने बूढ़े चरागों पे खूब इतराये, और उसे भूल गए जो हवा चलाता है

ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था, मैं बच भी जाता तो एक रोज़ मरने वाला था

शाम के बाद जब तुम सहर देख लो, कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करों

Disclaimer

यहां दी गई शायरी राहत इंदौरी ने लिखी है. Zee Bharat ने इसे इंटरनेट से लिया है.