सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आंखों में पानी चाहिए, ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझ को ख़ानदानी चाहिए
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूं हैं, इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूं हैं
दोस्ती जब किसी से की जाए, दुश्मनों की भी राय ली जाए
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा
ज़िंदगी भी काश मेरे साथ रहती उम्र-भर, ख़ैर अब जैसे भी होनी है बसर हो जाएगी
गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है, मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है
वही दुनिया वही सांसें वही हम, वही सब कुछ पुराना चल रहा है
दिल भी किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं, दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए
मज़ा चखा के ही माना हूं मैं भी दुनिया को, समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे
आंख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो, ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो