दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं, ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा, वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूं हारा
हमारे दिल में अब तल्ख़ी नहीं है, मगर वो बात पहले सी नहीं है
ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी, वो बात ख़त्म हुई दास्तान बाक़ी है
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी, ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता, मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
हम तो बचपन में भी अकेले थे, सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं, होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं
यहां दिए गए शेर जावेद अख्तर द्वारा रचित हैं. Zee Bharat ने इन्हें इंटरनेट से लिया है.