आप के बाद हर घड़ी हम ने, आप के साथ ही गुज़ारी है.

आइना देख कर तसल्ली हुई, हम को इस घर में जानता है कोई.

दर्द की भी अपनी एक अदा है, वो भी सहने वालों पर फ़िदा है.

तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गई, जब अपनों से उम्मीदें कम हो गईं.

समेट लो इन नाजुक पलों को ना जाने ये लम्हें हो ना हो, हो भी ये लम्हें क्या मालूम शामिल उन पलो में हम हो ना हो.

दिल अब पहले सा मासूम नहीं रहा, पत्त्थर तो नहीं बना पर अब मोम भी नहीं रहा.

पूरे की ख्वाहिश में ये इंसान बहुत कुछ खोता है, भूल जाता है कि आधा चांद भी खूबसूरत होता है.

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर, आदत इस की भी आदमी सी है.

उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने, औरों में नुक्स निकालते-निकालते...इतना खुद को तराशा होता, तो फरिश्ते बन जाते.

टूट जाना चाहता हूं, बिखर जाना चाहता हूं, मैं फिर से निखर जाना चाहता हूं...मानता हूं मुश्किल है,लेकिन मैं गुलज़ार होना चाहता हूं.