कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं कोई बेवफ़ा नहीं होता.
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए.
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं, पांव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है.
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों.
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला, अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला.
यहां लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं, मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे.
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी, किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी.
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो.
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा, इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा.
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में