हमें तो गांव में अक्सर दरोगा लूट जाता है... पढ़ें आलोक श्रीवास्तव के शानदार शेर

Alok srivastava

ज़रा पाने की चाहत में, बहुत कुछ छूट जाता है नदी का साथ देता हूं, समंदर रूठ जाता है

Alok srivastava

ग़नीमत है नगर वालों, लुटेरों से लुटे हो तुम हमें तो गांव में अक्सर दरोगा लूट जाता है

Alok srivastava

तराज़ू के ये दो पलड़े, कभी यकसां नहीं रहते जो हिम्मत साथ देती है मुक़द्दर रूठ जाता है

Alok srivastava

अजब शै हैं ये रिश्ते भी, बहुत मज़बूत लगते हैं ज़रा-सी भूल से लेकिन भरोसा टूट जाता है

Alok srivastava

गिले शिकवे, गिले शिकवे, गिले शिकवे, गिले शिकवे कभी मैं रूठ जाता हूं कभी वो रूठ जाता है

Alok srivastava

बमुश्किल हम मुहब्बत के दफ़ीने खोज पाते हैं मगर हर बार ये दौलत, सिकंदर लूट जाता है

Alok srivastava

तुम सोच रहे हो बस, बादल की उड़ानों तक मेरी तो निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक

Alok srivastava

टूटे हुए ख़्वाबों की इक लम्बी कहानी है शीशे की हवेली से, पत्थर के मकानों तक

Alok srivastava

दिल आम नहीं करता, अहसास की ख़ुशबू को बेकार ही लाए हम चाहत को ज़ुबानों तक