'अब इस कदर भी न चाहो कि दम निकल जाए' उबैदुल्लाह अलीम की 5 खूबसूरत गजलें

krishna pandey
May 17, 2024

तू अपनी आवाज़ में गुम है मैं अपनी आवाज़ में चुप, दोनों बीच खड़ी है दुनिया आईना-ए-अल्फ़ाज़ में चुप.

हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते, हम बहर-हाल बसर ख़्वाब तुम्हारा करते.

अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए, अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए.

मैं ये किस के नाम लिक्खूँ जो अलम गुज़र रहे हैं, मिरे शहर जल रहे हैं मिरे लोग मर रहे हैं.

VIEW ALL

Read Next Story