हिन्दू धर्म में विवाह के दौरान 7 फेरे लिए जाते हैं.
यह 7 फेरे 7 वचनों का प्रतीक होते हैं और 7 को पूर्ण अंक भी माना जाता है.
हिन्दू धर्म में विवाह एक जन्म के लिए नहीं, बल्कि सात जन्मों का साथ माना गया है.
अग्नि को साक्षी मानकर सात फेले लेने के बाद, वर वधू इस पति पत्नी के रिश्ते को शरीर, आत्मा और मन से एक दूसरे के साथ सुखी वैवाहिक जीवन जीने का वादा करते हैं.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ शादियों में 7 की जगह 4 फेरे क्यों लिए जाते हैं.
शादी में चार फेरे लेने के पीछे कई मान्यताएं हैं.
जानकारी के अनुसार सनातन धर्म में वैदिक विवाह में चार फेरों का ही विधान है.
यह चार फेरे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक माने जाते हैं.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह चार फेरे जीवन के चार लक्षों पर आधारित होते हैं.
इसमें पहले तीन फेरों में वधू आगे चलती है और आखिर के चाथे फेरे में वर आगे चलता है.
राजस्थान के कुछ राजपूत घराने, सिख समुदाय और गुजरात में विवाह में चार फेरे लिए जाते हैं.
हालांकि कुछ स्थानों पर सात फेरे इसलिए लिए जाते हैं क्योंकि अग्नि देव की सात जीवा मानी गई हैं. काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, धूम्रवर्णा, उग्रा, प्रदीप्ता.
अग्नि को साक्षी मानकर वर सात वचन देता है, इन सात वचनों को सप्तपदी कहते हैं.
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