कैसे चलते हैं संतों के अखाड़े? नियम तोड़ने वाले संत को ऐसे मिलती है सजा
Zee News Desk
Jan 28, 2025
इस समय दुनिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा धार्मिक मेला महाकुंभ प्रयागराज में लगा हुआ है.
कुंभ के दौरान साधु संत लाखों की संख्या में प्रयागराज पहुंचते हैं और अलग अगल अखाड़ों के संत अपना शिविर लगाते हैं.
लेकिन क्या आपके मन भी यह सवाल उठता है कि सनातन धर्म के संतों के अखाड़े अलग अलग क्यों होते हैं.
जानकारी के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी इन अखाड़ों का इतिहास सदियों पुराना है.
भारत में प्रमुख 13 अखाड़े हैं इन 13 अखाड़ों में सात अखाड़े शैव संन्यासी संप्रदाय के हैं, तीन वैष्णव के और बाकी अखाड़े उदासीन संप्रदाय के हैं. चलिए आपको अखाड़ों के अनोखे नियम और सजा के बारे में बताते हैं.
जानकारी के अनुसार अखाड़ों में नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी कोतवाल पर होती है.
महाकुंभ में हर अखाड़े में की अपनी कोतवाली होती है बड़े अखाड़ों में चार कोतवाल होते हैं इन कोतवालों का चयन कुंभ शिविर की स्थापना के समय ही होता है.
जब आप किसी भी अखाड़े में जाते हैं तो सबसे पहले कोतवाल से ही टकराते हैं जो हाथ में चांदी चढ़ी लाठी लेकर होता है.
कोतवालों के पास अखाड़े के नियम तोड़ने पर दंड देने का अधिकार भी होता है, अखाड़े के नियम तोड़ने वाले को कड़ाके की ठंड में गंगा में 108 डुबकी लगवाई जाती है.
कोतवाल नियम तोड़ने वाले को खुले आसमान के नीचे खड़े रहने की सजा भी दे सकता है.
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