बद्रीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल गुरुवार को प्रात: 7 बजकर 10 मिनट पर खुलेंगे. आदिगुरु शंकराचार्य की डोली एवं गाडू घड़ा कलश यात्रा बद्री पाण्डुकेश्वर से निकल चुकी है.
Chandra Shekhar Verma
Apr 26, 2023
तिल का तेल
भगवान बद्रीविशाल जी के महाभिषेक के लिए तिल का तेल का प्रयोग किया जाता है.
हिमपात
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा.
बेर का वृक्ष
यह देखकर मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के समीप खड़े होकर एक बदरी (बेर) के वृक्ष का रूप ले लिया और हिम को अपने ऊपर लेने लगी.
लक्ष्मी जी
जब कई वर्षों बाद भगवान विष्णु ने तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मी जी हिम से ढकी हुई थीं. ऐसे में उन्होंने कहा कि तुमने भी मेरे बराबर तप किया है, इसलिए आज से यहां मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जाएगा और मुझे बदरी के नाथ यानी कि बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा. इस तरह इस धाम का नाम पड़ा.
ब्रदीनाथ मंदिर
ब्रदीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले के नारायण पर्वत पर अलकनंदा नदी की गोद में स्थित है.
तप्त-कुण्ड
वहीं, जहां भगवान विष्णु ने तप किया था, वह स्थल तप्त-कुण्ड के नाम से विख्यात है. इसमें हर समय गर्म पानी मौजूद रहता है.
बद्रीनाथ धाम
यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप. मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां हैं. यहां भगवान विष्णु ध्यान मग्न मुद्रा में सुशोभित हैं.
शंख
बद्रीनाथ में पूजा अर्चना के समय कभी शंख नहीं बजाया जाता है. इसके पीछे धार्मिक, प्राकृतिक और वैज्ञानिक कारण हैं.
तुलसी
जब मां लक्ष्मी बद्रीनाथ धाम में तुलसी रूप में ध्यान कर रही थीं. उसी समय भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नाम के राक्षस का वध किया था.
भगवान विष्णु
ऐसे में भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण के वध के बाद यह सोचकर शंख नहीं बजाया कि मां लक्ष्मी की एकाग्रता भंग हो सकती है. यही कारण है कि बद्रीनाथ मंदिर में शंख नहीं बजाया जाता है.