सिंधिया घराने की मांढरे की माता मंदिर काफी फेमस मंदिर है.
राजपरिवार कोई शुभ कार्य करने से पहले मांढरे की माता की चौखट पर शीश नवाकर आशीर्वाद लेना नहीं भूलता है.
यह मंदिर कंपू स्थित पहाड़ पर महिषासुर मर्दिनी के रूप में स्थित है.
पहाड़ी पर मंदिर होने के कारण इस पहाड़ी का नाम भी मांढरे की पहाड़ी है. लगभग 100 सीढ़ियां चढ़कर श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने के लिये पहुंचते हैं.
मांढरे की माता का निर्माण लगभग सवा सौ साल से पहले ग्वालियर रियासत के महाराज जयाजीराव सिंधिया ने कराया था.
विजयादशमी पर सिंधिया राजपरिवार का मुखिया शमी पूजन के लिये आते हैं.
सातऊ की शीतला मंदिर अंचल के गुर्जर समाज की अगाध श्रद्धा है. इस मंदिर का निर्माण 1669 में कराया गया था.
इस मंदिर से बागियों (डकैतों) की भी आस्था रहती थी. पांच दशक पूर्व तक मंदिर बीहड़ में होने के कारण मंदिर 70 से 80 के दशक में डकैत भी मन्नत पूरी होने पर घंटे चढ़ाने के लिए आते थे.
लोग चैत्र की नवरात्रि पर पैदल मंदिर के दर्शन करने के लिए आते हैं. नवरात्रि के अलावा प्रत्येक सोमवार को भी श्रद्धालु आते हैं. यहां सत्यनारायण की कथा कराने का महत्व है.