महाराणा प्रताप से डरकर 36000 मुगलों ने टेक दिए थे घुटने! युद्ध ऐसा जिसने बहाई खून की नदियां
Zee News Desk
Aug 13, 2024
याद आता है हल्दीघाटी
महाराणा प्रताप का नाम सुनते ही सबके दिमाग में हल्दीघाटी का युद्ध आता होगा पर एक युद्ध ऐसा भी जिसके बारे में नहीं बताया जाता.
भामाशाह की मदद
भामाशाह की मदद से प्रताप को मुगलों पर हमला करने के लिए समाज के सभी वर्गों के लोगों से मिलकर लगभग 40,000 सैनिकों की सेना बनाने में मदद मिली.
क्यों चुना दिवेर?
दिवेर को इसलिए चुना क्योंकि ये दुश्मन सेना के लिए एक प्रवेश द्वार है. महाराणा ने अरावली पहाड़ियों में स्थित मनकियावास के जंगलों में युद्ध की रणनीति बनाई.
युद्ध का आरंभ
1582 में विजयादशमी के दिन दिवेर का युद्ध शुरू हुआ. महाराणा को मुगलों से खोए हुए क्षेत्र को वापस पाने की अपनी रणनीति पर पूरा भरोसा था.
सेना का विभाजन
दो भागों में विभाजित सेना का नेतृत्व उनके बेटे अमर सिंह कर रहे थें तो वहीं मुगलों का नेतृत्व अकबर के चाचा सुल्तान खान कर रहे थे.
मुगल चौकी पर हमला
महाराणा और उनकी सेना ने कुंभलगढ़ से लगभग 40 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित देवर गांव में मुगल चौकी पर हमला किया.
सुल्तान खान पर हमला
लड़ाई के दौरान अमर सिंह ने बहुत ही ताकत के साथ सुल्तान खान पर भाले से हमला किया.
अचूक वार
वार इतना जोरदार था की भाले ने उसके शरीर और घोड़े दोनों को जमीन में धंसा दिया और कोई भी सिपाही ये भाला नहीं निकाल पाया.
मुगलों का आत्मसमर्पण
अपने साथी सैनिकों को बुरी तरह पराजित देखकर मुगल सेना के शेष 36,000 सैनिकों ने महाराणा प्रताप के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
विजयी अभियान
इस अभियान में प्रताप ने चित्तौड़, अजमेर और मांडलगढ़ को छोड़कर पूरे मेवाड़ को फिर से जीत लिया.