जहांगीर के शासन काल में बुंदेलखंड के शासक वीर सिंह देव बुंदेला को तमाम विशेषाधिकार प्राप्त थे.

वीर सिंह देव बुंदेला का निधन 1627 में हुआ, जिसके बाद उसकी जागीर बड़े बेटे जुझार सिंह ने संभाली.

जहांगीर के बाद शाहजहां को 1628 में तख्त मिला, तब जुझार सिंह न्योता मिलने पर बेटे विक्रमाजीत को शासन सौंपकर आगरा के लिए रवाना हुआ.

सत्ता हाथ में आते ही विक्रमाजीत ने शाही अधिकारियों को परेशान करना शुरू कर दिया.

बादशाह तक बात पहुंची तो जुझार सिंह की अनुचित तरीके से पाई गई संपत्ति की जांच का आदेश दिया, जो जुझार सिंह ने इसे अपना अपमान समझा.

जुझार सिंह आगरा के किले से जब ओरछा पहुंचा तो जंग की तैयारी शुरू कर दी, जिसमें वह हार गया

शाहजहां ने मुगल झंडे का विस्तार करने का कहा, लेकिन जुझार सिंह माना नहीं और बुंदेलखंड लौटकर पड़ोसी राजा प्रेमनारायण का चौरागढ़ दुर्ग छीन लिया.

शाहजहां आदेश की नाफरमानी से बौखला गया. लूट का हिस्सा मांगने पर जुझार सिंह ने इन्कार किया तो शहजादे औरंगजेब को उसका दमन करने भेजा.

औरंगजेब की शाही सेना को देख जुझार सिंह भाग गया, उसने गोंडा के जंगलों में शरण ली, जहां गोंडों ने उसकी हत्या करके सिर शाही दरबार में भेज दिया.

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