18वीं सदी में जब मुगलों के राज का सूरज ढलने लगा था, तब भी मुगल हरम की रौनक गुलजार रहती थी.
नूर बाई का जलवा
13वां मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला तब दिल्ली के तख्त पर बैठा था. उसी दौर में पुरानी दिल्ली की एक हवेली में एक तवायफ रहती थी. उसका नाम नूर बाई था. नूर बाई का सबसे बड़ा फैन मुहम्मद शाह था जो 17 साल की उम्र में राजा बना था.
रंगीला के राज में कमजोर हुए मुगल
मुहम्मद शाह अक्सर शराब, शबाब, कबाब और नाच-गाने में डूबा रहता था. रंगीनमिजाजी की वजह से वो 'रंगीला' के नाम से मशहूर था. पुरानी दिल्ली की तवायफें उसकी महफिलों में आती थीं. बादशाह 'रंगीला' को नूर बाई बड़ी पसंद थी.
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
नूर बाई को अक्सर रंगीला के आसपास पाया जाता. वहीं दूरदर्शी नूर बाई ने हालात को समझते हुए नादिर शाह से भी संबंध बना लिए थे. और बहुत संभव है कि ऐसी ही किसी एकांत की मुलाक़ात में उसने कोहेनूर का राज़ नादिर शाह पर खोल दिया हो.
ये वाक़या ईस्ट इंडिया कंपनी के इतिहासकार थियो मैटकॉफ़ ने कोहेनूर के बारे में किताब में बताया है, हालांकि कई इतिहासकार इस पर शक भी जताते हैं.
मुठ्ठी में था बादशाह
नूर बाई के कोठे के आगे अमीरों और प्रभावशाली लोगों के हाथियों और घोड़ों का वो हुजूम उमड़ता था कि पुरानी दिल्ली का उस दौर में ट्रैफिक जाम हो जाता.
आगे बढ़ने की चाहत
नूर बाई को मुहम्मद शाह रंगीला से कोई लगाव नहीं था. मुगलों का वक्त कमजोर पड़ा तो उसने फौरन पाला बदल लिया. इतिहासकारों के मुताबिक, जब ईरान के नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला बोला तो नूर बाई की नीयत भी बदल गई. उसने मुगल बादशाह को धोखा देकर नादिर शाह से दोस्ती की और उसे कोहिनूर का राज बता दिया.
नादिर शाह की चाल
फिर नादिर शाह ने बड़ी चालाकी दिखाई. उसने बादशाह रंगीला को लिखित समझौते के लिए बुलाया. फिर एक रस्म का हवाला देते हुए आपस में दोनों की पगड़ियां बदलवाईं. इस तरह मुहम्मद शाह रंगीला की पगड़ी में छिपा कोहिनूर हीरा मुगलों के हाथ से फिसलकर नादिर शाह के पास चला गया.
मुगलों को किया कंगाल
मुगल उस दौर में बेहद कमजोर पड़ चुके थे. नादिरशाह ने दिल्ली को जमकर लूटा. उसमें सबसे ज्यादा बर्बादी मुगलों की हुई. कहा जाता है कि इसी तवायफ ने मुगलों को कंगाल और बर्बाद कर दिया था.