मुगल हरम में होता था इतना खजाना, रानियां यहां से करती थीं बेशुमार कमाई

समंदर जितना विशाल मुगलों का इतिहास अब किताबों से निकलकर लोगों के सामने आ रहा है.

मुगल बादशाहों के बारे में तो काफी कुछ लिखा जा चुका है लेकिन मुगल साम्राज्य की रानियां और राजकुमारियां भी पीछे नहीं थीं.

साम्राज्य का विस्तार और कारोबार बढ़ाने की योजना में उनकी हिस्सेदारी काफी ज्यादा रहती थी.

भले ही रानियां मुगल हरम में रहती थीं लेकिन उनको सल्तनत में चल रहे हर मुद्दे की खबर होती थी.

मुगल रानियों और राजकुमारियों को सालाना तनख्वाह तो मिलती ही थी. लेकिन बाकी जगहों से भी वह खूब कमाई करती थीं.

कई महिलाओं को इमारतें और बाग तक दिए जाते थे. मुगल हरम में मौजूद हिजड़े उनके खजांची होते थे.

अकबर की सबसे प्रिय पत्नी जोधा बाई हरम की पहली ऐसी रानी थीं, जिनका अंदरूनी और विदेशी कारोबार में सीधा दखल था.

अकबर और जहांगीर के दौर में उन्होंने बड़े जहाजों का निर्माण कराया था. ये जहाज तीर्थयात्रियों को मक्का शहर तक ले जाते और वापस लाते थे.

इन्हीं जहाजों से अंतरराष्ट्रीय सीमाओं तक बेशुमार रेशम और मसालों का कारोबार होता था. जोधा बाई ने ही विदेशी व्यापार का विस्तार किया था.

बात नूरजहां की करें तो आंतरिक व्यापार के टोल सिस्टम के जरिए उनकी इनकम 230,000 महमूदियों की थी.

आर्थिक मामलों में अपना दिमाग लगाकर बादशाह और सल्तनत को मजबूत करने में उन्होंने खासा योगदान दिया था.

वहीं शाहजहां की बेटी जहांआरा और रोशनआरा को कई मनसबदारों के बराबर तनख्वाह मिलती थी. उनका घरेलू व्यापार पर मजबूर प्रशासनिक नियंत्रण था.

कई अन्य शहरों से भी इन दोनों को खूब कमाई होती थी. सूरत के बंदरगाह से जहांआरा को खूब दौलत मिलती थी. यहीं से विदेशी व्यापार भी होता था.

मुगल हरम का अपना खजाना भी बेहिसाब होता था. यानी सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात से कमरे भरे रहा करते थे.

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