हरम की जरूरत के पीछे मुगलों की मानसिकता जिम्मेदार थी. मुसलमानों को महिलाओं से खास लगाव रहा था.
उन्हें उनके बीच काफी सुकून मिलता था. हरम बनाने का मकसद केवल यौन सुख पाना ही नहीं था.
हरम में बच्चों की परवरिश भी की जाती थी. हम्माम था, स्कूल और खेल के मैदान भी थे.
स्नानघर से लेकर रसोई घर भी हुआ करते थे. इतना ही नहीं हरम में शाही खजाने,गुप्त दस्तावेज और शाही मुहर भी रखी जाती थीं.
हरम में सब इंतजाम इसलिए किए जाते थे ताकि बादशाह अपने सारे काम वहां से भी कर सके वो भी बिना किसी परेशानी के.
हरम में औरतों की संख्या इतना ज्यादा होती थी कि कई ऐसी दासी भी होती थीं जिनकी पूरी उम्र बीतने के बाद भी बादशाह को नजर भरके देख तक नहीं पाती थीं.
हरम में रहने वाली औरतों का जीवन बेहद आलीशान होता था. रोजाना सुबह शाही महिलाओं के लिए कपड़े आते थे, जो कपड़ा एक बार वो पहन लेती थीं, उसे दोबारा नहीं पहनती थीं.
वो कपड़ा दासियों में बांट दिया जाता था. शाही औरतें फव्वारों के पास लेटी रहती थीं.
रात में आतिशबाजी के नजारे का लुत्फ उठाती थीं. मुर्गे की लड़ाई में दिलचस्पी लेती थीं.
रात में आतिशबाजी के नजारे का लुत्फ उठाती थीं. मुर्गे की लड़ाई में दिलचस्पी लेती थीं.