विटामिन एवं मिनरल की कमी दूर करने में फोर्टिफिकेशन की भूमिका 'अहम'
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विटामिन एवं मिनरल की कमी दूर करने में फोर्टिफिकेशन की भूमिका 'अहम'

वैश्विक रूप से 2 अरब लोग सूक्ष्मपोषक के कुपोषण से ग्रस्त हैं एवं इन लोगों में से एक तिहाई हिस्सा भारत में रहता है.

विटामिन एवं मिनरल की कमी दूर करने में फोर्टिफिकेशन की भूमिका 'अहम'

भारत एक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था एवं विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला दूसरा देश है. जनसंख्या के इस विशाल समूह की पूर्ण क्षमता का सही इस्तेमाल करने के लिए महत्वपूर्ण है कि स्वास्थ्य एवं पोषण को प्राथमिकता दी जाए. स्वस्थ लोग शारीरिक एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों की तुलना में अधिक सशक्त होते हैं. यही कारण है कि उनकी कार्य क्षमता रचनात्मक और उत्पादक होती है. साथ ही स्वस्थ लोग जीवन में ग़रीबी और भुखमरी जैसी चुनौतियों को सुनियोजित रणनीति द्वारा स्थायी रूप से निजात दिलाने में दक्ष होते हैं. 

हालांकि, वैश्विक रूप से 2 अरब लोग सूक्ष्मपोषक के कुपोषण से ग्रस्त हैं एवं इन लोगों में से एक तिहाई हिस्सा भारत में रहता है. सूक्ष्म पोषक कुपोषण, जिसे छिपी हुई भूख के रूप में भी जाना जाता है, शरीर के जैविक एवं बचाव कार्यों हेतु आवश्यक पोषण तत्वों को संदर्भित करता है. इनमें विटामिन, मिनरल एवं चिन्हित तत्व समाहित होते हैं, जो कि हमारे शरीर द्वारा उत्पादित नहीं किए जाते, बल्कि इनकी आहार के माध्यम से आपूर्ति की आवश्यकता होती है. सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे आयरन, फॉलिक एसिड, कैल्शियम, विटामिन ए एवं आयोडीन, मातृ एवं बाल स्वास्थ्य एवं आबादी के सम्पूर्ण वृद्धि एवं विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के परिणामस्वरूप एनीमिया जैसे विकारों का प्रसार होता है.

इस संबंध में, मध्य प्रदेश के पोषण संबंधित संकेतक मुख्य रूप से बाल पोषण के संदर्भ में चुनौतीपूर्ण ढंग से सामने आ रहे हैं. राज्य में 42% बच्चे अविकसित एवं कम वजन के और 26% कमजोर हैं. यह राज्य के विकास के लिए गंभीर चुनौती है जिसका सामना करने के लिए हर संभव प्रयास किये जाने चाहिएं.  

दो विटामिन संबंधी महत्वपूर्ण विकारों, विटामिन ए एवं डी पर कार्य किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है. आबादी के समस्त सामाजिक-आर्थिक समूहों के 70% लोग विटामिन डी की कमी से ग्रस्त हैं. इसके अतिरिक्त, आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश में 86% परिवारों 50% से कम विटामिन ए के सम्बन्ध में सुझाए गए आहार स्रोत का सेवन करते हैं.   

मध्य प्रदेश में पोषण के क्षेत्र में कार्य कर रहे एक विशेषज्ञ के रूप में, मेरा मानना है कि राज्य में सूक्ष्म पोषक तत्वों के विकारों को दूर करने के लिए व्यापक एवं समन्वित प्रयास किए जाने की आवश्यकता है. इन विकारों के पीछे बहुत से कारण हैं, जिनमें आहार विविधता की कमी, संक्रमण, बीमारी एवं शरीर के तंत्र द्वारा पोषक तत्वों का अवशोषण नहीं करना शामिल है. इस संबंध में, लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने से कुपोषण एवं संक्रामक रोगों के दुष्चक्र को समाप्त करने के प्रयास प्रारम्भ हो जाएंगे.  

आंखों की रोशनी को सुधारने, स्वस्थ त्वचा एवं स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली को सुनिश्चित करने में विटामिन ए आवश्यक है. विटामिन डी हड्डी के स्वास्थ्य एवं शरीर में तंत्रिका, मांसपेशियों एवं प्रतिरक्षा प्रणाली के उचित कार्य के लिए महत्वपूर्ण है. पौष्टिक भोजन की खपत को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक विटामिन एवं मिनरल जिसमें पूरक आहार एवं आहार का विविधीकरण शामिल हो. इसके पर्याप्त सेवन हेतु सुनियोजित रणनीतिक कार्य करने की आवश्यकता है. हालांकि, ये उपाय उपलब्धता की सीमाएं, वहन करने की क्षमता और साथ ही सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं एवं सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से प्रभावित होते हैं.  

खाद्य फोर्टिफिकेशन एक संभव एवं व्यवहार में आने वाली रणनीति है और यह सामान्य रूप से उपयोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थों जैसे गेहूं का आटा, चावल, दूध, तेल एवं नमक को विटामिन एवं मिनरल के स्रोत के रूप में पोषण को जोड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है. फोर्टिफिकेशन लोगों द्वारा पहले से ग्रहण किये जा रहे पोषक तत्वों को बदलता नहीं है, बल्कि उन तत्वों की गुणवत्ता को बढ़ाता है और उसमें आने वाली लागत बहुत कम होती है.   

खाद्य तेल, वसा में घुलने वाले विटामिन ए एवं डी के स्रोत के रूप में अनोखा अवसर प्रदान करता है. लगभग 99% परिवार खाद्य तेल का सेवन करते हैं, जिसमें प्रति व्यक्ति द्वारा औसतन 12-18 किलोग्राम खाद्य तेल का सेवन किया जाता है. अगर फोर्टिफिकेशन किया जाता है तो एक आम आदमी के लिए एक लीटर पर लगभग 7-10 पैसे अधिक देने पड़ते हैं, मगर इसके अलावा, फोर्टिफाइड तेल के रंग, बनावट, स्वाद अथवा उसके जीवन पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं डालता है और यह उच्च तापमान पर स्थिर रहता है.  

फोर्टिफिकेशन की असीम क्षमता को स्वीकार करते हुए, मध्य प्रदेश सरकार ने ‘राज्य फोर्टिफिकेशन एलायंस‘ का गठन किया है. इस पहल को सोयाबीन तेल निर्माताओं से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है और परिणाम स्वरूप 2015 तक, फोर्टिफाइड सोयाबीन तेल की पहुंच राज्य में 4.2 करोड़ उपभोक्ताओं तक हो गई है. तब से, राज्य सरकार ने राज्य में समस्त पैकेटबन्द तेल एवं दूध के फोर्टिफाइड को अनिवार्य कर दिया एवं इस विषय को कैबिनेट के पास मंजूरी के लिए रखा गया है. राज्य सरकार ने हाल ही में राज्य में जन वितरण प्रणाली के माध्यम से डबल फोर्टिफाइड नमक के वितरण की घोषणा की है.  

मध्य प्रदेश में प्रयासों को और आगे बढ़ाने के लिए, सरकारी खाद्य सुरक्षा योजनाएं जिनमें जन वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.), समेकित बाल विकास सेवाएं (आई.सी.डी.एस.) कार्यक्रम एवं मिड डे मील (एम.डी.एम.) शामिल हैं, उनमें फोर्टिफाइड तेल की शुरुआत आवश्यक है. 2016-17 में, 11.40 लाख स्कूल के 9.78 करोड़ बच्चों को एम.डी.एम. के माध्यम से गर्म पके हुए भोजन का लाभ मिला और जन वितरण प्रणाली की पहुंच 16 करोड़ परिवारों तक हुई. इतनी व्यापक पहुंच के साथ, इन योजनाओं के माध्यम से स्थायी रूप से विटामिन एवं मिनरल विकारों को दूर करने के लिए सरकार को फोर्टिफाइड खाद्य सामग्री, मुख्य रूप से फोर्टिफाइड तेल के उपयोग की अनिवार्यता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए. 

कुपोषण होने से न केवल स्वास्थ्य के ऊपर होने वाले खर्चों में वृद्धि होती है, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है. एक पोषण विशेषज्ञ के रूप में, मैं मध्य प्रदेश में विटामिन ए एवं डी के प्रचलित विकारों को दूर करने की तत्काल आवश्यकता को पहचानती हूं. जैसा कि हम कुपोषण मुक्त भारत की तरफ जाना चाहते हैं, मेरा आग्रह है कि राज्य फोर्टिफिकेशन को आगे बढ़ाने एवं फोर्टिफाइड तेल के प्रति लोगों को जागरुक करने में हर संभव प्रयास करे और इस उत्तरदायित्व को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं.

(लेखिका, डायटीशियन एवं पोषण विशेषज्ञ हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)

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