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नई दिल्ली : जब लोग अपने जीवन के आखिरी दौर में होते हैं, वे अक्सर अपने कुछ 'मृतप्राय' दोस्तों और रिश्तेदारों के विचारों से रूबरू होते हैं, जो उनसे मिलने के लिए पहुंचते हैं। क्या इससे उन्हें वाकई में अपने अंतिम पलों में सुकून मिलता है। वैसे भी जब किसी की मौत नजदीक आती है, ऐसे लोगों के मिलने के लिए पहुंचने का सिलसिल बढ़ जाता है।
हालांकि, यह चलन तो काफी पहले से है लेकिन अब इसको लेकर एक अध्ययन किया गया है। यद्यपि वैज्ञानिक अब भी इस बात से अनजान हैं कि इस तरह के विचार कैसे उत्पन्न होते हैं। न्यूयॉर्क में केनिसियस कॉलेज के वैज्ञानिकों ने 66 मरीजों के विचार जाने और बातचीत की, जो अस्पताल में अपनी जिंदगी के आखिरी कगार पर पहुंच चुके हैं।
इस अध्ययन में एक बात साधारण तौर पर सामने आई कि अधिकांश मरीजों ने इस तरह का एक विचार हर दिन कथित तौर पर साझा किया। कई मरीजों ने कहा कि मिलने के लिए लोगों का आना 'वास्तविक अहसास' है और दोस्तों एवं रिश्तेदारों के विचार इनमें से सबसे कॉमन पाए गए। शोधकर्ताओं ने जिक्र किया कि जैसे कोई मृत्यु के नजदीक पहुंचता है, तो उसके आरामदायक सपने/विचार अधिक प्रचलित हो गए।
मौत की आगोश में जा रहे किसी व्यक्ति के मृत्यु पूर्व अनुभव और उनके नजदीकी लोगों पर इसका असर गहराई से सार्थक होता है। इस तरह के विचार मौत से पहले किसी भी महीने, सप्ताह, दिन और घंटे आ सकते हैं। जो लोग इस तरह के हालात का सामना कर रहे होते हैं, उनके लिए मृत्यु के भय का अनुभव कुछ कम हो सकता है।