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नई दिल्ली: जब दो दशों के बीच युद्ध होता है तो तरह तरह की मिसाइलें छोड़ी जाती हैं. इन मिसाइलों को नष्ट करने के लिए दुनिया के ताकतवर देश मिसाइस डिफेंस सिस्टम (Missile Defence Systems) की तैनाती करते हैं. भारत ने रूस (Russia) से एक ऐसा ही Missile Defence System खरीदा है, जिसका नाम S-400 है.
यह सिस्टम हवा में ही दुश्मन की मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम है. लेकिन एक पल के लिए कल्पना कीजिए अगर पूरी पृथ्वी की तरफ कोई बड़ा उल्का पिंड (Asteroid) या कोई आकार में बहुत बड़ी चट्टान बढ़ने लगे और उसके पृथ्वी से टकराते ही पूरी मानव सभ्यता के नष्ट होने का खतरा पैदा हो जाए. तो उसे रोकने के लिए क्या किया जा सकता है?
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने भविष्य के इस खतरे को टालने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम उठाया है. नासा ने इसके लिए जो मिशन लॉन्च किया है, उसका नाम डबल एस्टेरॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट (Double Asteroid Redirection Test) है.
ये DART एक 19 मीटर ऊंचा स्पेस क्राफ्ट है, जो 2022 के शुरुआती महीनों में आकार में 163 मीटर बड़े डाइमोरफोस नामक उल्कापिंड को हल्की सी टक्कर मारेगा. ये उल्कापिंड पृथ्वी से 1 करोड़ दस लाख किलोमीटर दूर है.
इस टक्कर की वजह से डाइमोरफोस अपने रास्ते से थोड़ा सा भटक जाएगा. ये टक्कर बहुत मामूली होगी. लेकिन अगर भविष्य में पृथ्वी की तरफ कोई चट्टान या उल्कापिंड बढ़ा तो उसका रास्ता भी इसी Technology की मदद से बदला जा सकेगा और इसके पृथ्वी से टकराने के खतरे को टाला जा सकेगा.
ये उल्कापिंड अपने से बड़े एक दूसरे उल्कापिंड का चक्कर लगाता है, जिसका नाम है Didymos (डिडिमॉस). इसका आकार 780 मीटर है. गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के मुताबिक अंतरिक्ष में जिस भी पिंड की गुरुत्वाकर्षण शक्ती ज्यादा होती है, छोटे पिंड उसके चक्कर काटने लगते हैं. जैसे चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है और पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है. इसलिए आप डाइमोरफोस को डिडिमॉस का चंद्रमा या उपग्रह भी कह सकते हैं.
वैज्ञानिकों ने अपने इस महाप्रयोग के लिए एक साथ 2 उल्कापिंडों का चयन इसलिए किया क्योंकि अगर DART सिर्फ एक उल्कापिंड से टकराता तो वो अपने रास्ते से सिर्फ 0.000006% ही भटकता. इस बदलाव की गणना करने में कई वर्षों का समय लग जाता. वहीं इस टकराव की वजह से डाइमोरफोस अपनी कक्षा से भटकेगा तो ये बदलाव करीब एक प्रतिशत का होगा.
डाइमोरफोस, डिडिमॉस की परिक्रमा करता है और इस दौरान वो अपने से बड़े उल्कापिंड से आने वाली रोशनी को भी कुछ हद तक रोक देता है..लेकिन जब 6.6 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से DART. इस उल्कापिंड से टकराएगा और इसका रास्ता बदल जाएगा तो जो रोशनी ये रोकता है, उसमें भी बदलाव आएगा और वैज्ञानिक एक से दो महीनों में शक्तिशाली Telescopes की मदद से इसकी गणना कर पाएंगे.
इस Technology का विकास इसलिए ज़रूरी है क्योंकि हमारे सौरमंडरल में इस समय छोटे और बड़े आकार के 7 लाख से ज्यादा उल्कापिंड लगातार सूर्य और ग्रहों के चक्कर लगा रहे हैं. और पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले ज्ञात उल्कापिंडों की संख्या 27 हज़ार से ज्यादा है. इनमें से ज्यादातर छोटे आकार हैं. लेकिन 2 हजार उल्कापिंड ऐसे भी हैं, जो खतरनाक माने जाते हैं और जिन पर वैज्ञानिक लगातार नजर रखते हैं.
अगर आकार में 150 मीटर बड़ा उल्कापिंड भी पृथ्वी से टकरा जाए तो इस टक्कर से एक परमाणु बम जितनी ऊर्जा निकलेगी, जिससे हज़ारों लोगों की जान जा सकती है. अगर आकार में 300 मीटर बड़ा उल्कापिंड पृथ्वी से टकरा जाए तो एक पूरा का पूरा महाद्वीप तबाह हो सकता है और अगर इससे भी बड़ा उल्कापिंड या चट्टान पृथ्वी से टकराई तो पूरी की पूरी मानव सभ्यता भी नष्ट हो सकती है और ऐसा एक बार हो भी चुका है.
बताया जाता है कि करीब साढ़े 6 करोड़ साल पहले 10 किलोमीटर चौड़ा एक उल्कापिंड पृथ्वी से टकरा गया था. तब दुनिया में डायनासोर (Dinosaurs) का राज हुआ करता था लेकिन इस टक्कर के कुछ घंटों में पृथ्वी से इनका नामो निशान खत्म हो गया और उस समय पृथ्वी पर मौजूद 76 प्रतिशत प्रजातियां हमेशा के लिए विलुप्त हो गईं.
ये घटना भविष्य में कभी भी घट सकती है. लेकिन अब वैज्ञानिक इस सर्वनाश को रोकने की कोशिश कर रह हैं और NASA का DART मिशन इसी का हिस्सा है. ये प्रयोग पूरी मानव जाति को बचा सकता है.