भारत पहले कहीं और था जो करोड़ों साल में करेंट लोकेशन पर पहुंचा, वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला दावा
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भारत पहले कहीं और था जो करोड़ों साल में करेंट लोकेशन पर पहुंचा, वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला दावा

Earthquake history and science: भारत में आए भूकंप के लिए जो वजह बताई जा रही है उसके केंद्र में हिमालय और अलग-अलग प्लेट्स हैं और इससे ही भूकंप के खतरे को समझा जा सकता है. यहां आपको भूकंप से जुड़ी ऐसी डिटेल्ड जानकारी मिलेगी जो करोड़ों लोगों ने शायद इससे पहले ना कहीं पढ़ी होगी और न सुनी होगी.

फाइल

Earthquake Analysis: देश में पिछले तीन दिनों में भूकंप के कई झटके आए हैं इससे भूकंप को लेकर डर बढ़ गया है. दरअसल भूकंप एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही आप डर जाते हैं, जिसके आने का मतलब तबाही और बर्बादी ही होता है. ये एक ऐसी समस्या है जिसका समाधान नहीं किया जा सकता है. बीते गुरुवार को अरुणाचल प्रदेश में भूकंप के दो झटके महसूस किए गए हैं, रिक्टर स्केल पर जिनकी तीव्रता 5.7 और 3.5 मापी गई. इससे पहले बीते कुछ दिनों भूकंप के कई झटके महसूस किए गए हैं. इसलिए इंसान के अनुमान से परे इस प्राकृतिक आपदा यानी भूंकप की प्रकिया का विश्लेषण आप सभी के लिए समझना बेहद जरूरी है.

खतरे को कैसे समझें?

भूकंप और हिमालय के बीच जो संबंध है उसको लेकर अब दावा किया जा रहा है कि आने वाले दिनों में हिमालय क्षेत्र में एक बहुत ही बड़ा भूकंप आ सकता है. हालांकि ये भूकंप कब आएगा इसके बारे में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. इसलिए इससे डरने के बजाय भूकंप को लेकर जरुरी तैयारी करनी चाहिए. ये दावा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के सीनियर भू-भौतिक विज्ञानी डॉक्टर अजय पॉल ने किया है. उनके मुताबिक बार-बार ये भूकंप यूरेशियन और इंडियन प्लेट की वजह से हो रहा है. भूकंप के लिए जो वजह बताई जा रही है उसके केंद्र में हिमालय और अलग-अलग प्लेट्स है और इससे ही भूकंप के खतरे को समझा जा सकता है.  

विज्ञान के नजरिए से विश्लेषण

अक्सर आप सुनते हैं भूकंप के झटकों के बाद इसके एपी सेंटर के बारे में जानकारी साझा की जाती है.और ये भी बताया जाता है कि वो जमीन से कुछ किलोमीटर नीचे था. दरअसल ये भूकंप को जानने और समझने का तरीका होता है. पृथ्वी के अंदर की संरचना को 4 हिस्सों में बांटा गया है. सबसे नीचे के हिस्सा को Inner Core, उसके बाद के हिस्से को Outer Core, उससे ऊपर के हिस्से को मैनटल यानी आवरण और सबसे ऊपरी हिस्से को क्रस्ट (Crust) यानी भू-पर्पटी कहा जाता है. पृथ्वी के नीचे जितना जाएंगे उतना ही वहां का तापमान बढ़ता जाता है. Inner Core में यही तापमान करीब 5200 सेल्सियस होता है.

प्लेट्स का टकराना बड़ी घटना

भूकंप के आने की शुरुआत यही से होती है. तापमान ज्यादा होने की वजह से पृथ्वी के भीतर लगातार हलचल होती रहती है . और इस हलचल का असर पृथ्वी के प्लेट्स पर होता है जिसे टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है. पूरी पृथ्वी इन प्लेट्स में बंटी है. ये प्लेट्स अलग-अलग हिस्सों में और अलग-अलग नाम से बंटे हुए है. किसी प्लेट के ऊपर कोई देश है तो, किसी प्लेट के ऊपर समुद्र है, किसी प्लेट के ऊपर पहाड़ है तो किसी प्लेट के ऊपर नदी और रेगिस्तान. इन प्लेट्स में सबसे बड़ी प्रशांत प्लेट है जबकि भारत पर असर डालने वाले यूरेशियन और भारतीय प्लेट है. कुछ प्लेट बेहद छोटे है तो कुछ बेहद बड़े होते हैं. ये प्लेट जब आपस में टकराते हैं तो भूकंप आता है. दुनिया के जिन देशों में सबसे ज्यादा भूकंप आते हैं वो देश उन जगहों पर बसे हैं जहां ये प्लेट आपस में एक-दूसरे जुड़ती हैं. 

प्रकति का अजब-गजब कनेक्शन

ये सभी प्लेट स्थिर नहीं होते हैं बल्कि धीरे-धीरे आगे या पीछे खिसकते रहते हैं. इसलिए ये सभी प्लेट्स मुख्य तौर पर 3 तरीके से काम करते हैं. पहले तरीके में, एक प्लेट दूसरे प्लेट से टकराती है, दूसरे में- एक प्लेट दूसरे प्लेट से अलग हो जाती और तीसरे तरीके में दोनों प्लेट एक-दूसरे के आसपास खिसकती हैं. जब प्लेट्स जब टकराती हैं तो 2 अलग-अलग संभावनाएं होती है. पहली, एक प्लेट दूसरे प्लेट के नीचे आ जाए या दोनों प्लेट की टक्कर बराबर की हो और दोनों प्लेट का एक हिस्सा ऊपर उठ जाए. हिमालय का निर्माण भी दो प्लेट के टकराने और उसके बाद ऊपर उठने की वजह से ही हुआ है. दूसरा तरीका ये होता है दोनों प्लेट एक-दूसरे से दूर हो जाएं ऐसे में खाई बनती है और समुद्र, झील का निर्माण होता है. ये सभी प्रक्रियाएं धीरे-धीरे और कई करोड़ सालों से जारी है.

भारत में धरती के कांपने की वजह

भारत में भूकंप के लिए इस मैप के मुताबिक यूरेशियन प्लेट और भारतीय प्लेट जिम्मेदार है. दुनिया भर के दूसरे प्लेट की तरह यूरेशियन प्लेट और भारतीय प्लेट भी आपस में टकराते रहे हैं और इस टकराव में भारतीय प्लेट धीरे-धीरे यूरेशिनयन प्लेट के नीचे आ रहा है. इसलिए टकराव के दौरान छोटे-छोटे भूकंप आते रहते हैं जिसके बारे में हमें पता भी नहीं चलता है. लेकिन जब दोनों प्लेट्स के बीच टक्कर ज्यादा जोर से होती है तो भूकंप की तीव्रता ज्यादा होती है. भारत में भी आजकल इन दोनों प्लेट्स की टक्कर की वजह से ज्यादा तीव्रता के भूकंप आ रहे हैं.

भारतवर्ष के बनने की कहानी

अब आपको इन प्लेट्स से जुड़े मूवमेंट को लेकर दिलचस्प जानकारी बताते हैं. इससे आप आप ये समझेंगे कि ये प्लेट्स कैसे काम करती हैं और इसका असर कितना ज्यादा होता है? इस जानकारी से आप मौजूदा भारतवर्ष के बनने की कहानी भी जान पाएंगे. आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत आज जहां है करोड़ों वर्ष पहले कही और था. इंटरनेट पर मौजूद एक एनिमेटेड वीडियो के जरिए एक्सपर्ट्स ने समझाया है कि आज से करीब 7 करोड़ 10 लाख साल पहले भारत पृथ्वी के दक्षिणी छोर पर अंटार्कटिका और ऑस्ट्रेलियन प्लेट्स से जुड़ा था. धीरे-धीरे भारतीय प्लेट, अंटार्कटिका और ऑस्ट्रेलियन प्लेट्स से अलग हुई और उत्तर की ओर बढ़ती गई. उस समय भारतीय प्लेट्स के खिसकने की रफ्तार प्रति वर्ष 8 से 16 सेंटीमीटर थी. ये स्पीड कितनी कम थी कि इसका अंदाजा आप यूं लगा सकते हैं कि इस स्पीड से 1 किलोमीटर की दूरी तय करने पर 8 हजार 333 वर्ष लगेंगे. इस तरह धीरे-धीरे भारतीय प्लेट आगे बढ़ती गई और देश की करेंट लोकेशन वो गई जो आज है. अब भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकरा रही है, इसलिए एक्सपर्ट परेशान हैं क्योंकि इससे हालात बिगड़ सकते हैं.

भारत पर मंडरा रहा खतरा

हिमालय और हिंदकुश का रेंज भारत में बड़े भूकंप की संभावना को जन्म देता है. दुनिया के कुछ बड़े भूकंप हिमालय के आसपास आए हैं. नेपाल का 2015 में 7.8 तीव्रता का भूकंप हो या 2005 में PoK के मुजफ्फराबाद में 7.6 तीव्रता का भूकंप. देश का करीब 59 प्रतिशत हिस्सा मध्यम या गंभीर भूकंप की चपेट में है जो चिंता का विषय है.

जोन से समझिए कहां पर कितना खतरा?

जोन 5 भूकंप के लिहाज से सबसे ज्यादा सक्रिय और सबसे खतरनाक है. इस जोन में कश्मीर, पश्चिमी और मध्य हिमालय, उत्तर और मध्य बिहार, उत्तर-पूर्व भारतीय क्षेत्र, कच्छ का रण और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह है. इस हिस्से बड़े और विनाशकारी भूकंपों की आशंका बनी रहती है. 26 जनवरी 2001 को गुजरात के भुज में ही भारी भूकंप आया था जिसकी तीव्रता 7.7 थी.

जोन 4 में जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, गंगा के मैदानों के कुछ हिस्से, उत्तरी पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तर बंगाल जैसे क्षेत्र आते हैं. दिल्ली भी जोन 4 में है जो भूकंप के लिहाज से बेहद खतरनाक है और इसमें आए भूकंप से काफी ज्यादा नुकसान होने का खतरा होता है.

देश के बड़े हिस्से पर खतरा!

जोन 3 में भूकंप का खतरा मध्यम स्तर का माना जाता है. इस जोन में चेन्नई, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता और भुवनेश्वर जैसे कई शहर हैं, जबकि जोन 2 में भूकंप का खतरा उससे भी कम होता है. इसमें भूकंप से कम नुकसान का जोखिम होता है. त्रिची, बुलंदशहर, मुरादाबाद, गोरखपुर जैसे शहर इस जोन में मौजूद हैं. जोन 1 का जिक्र इसलिए नहीं होता क्योंकि इस जोन में भूकंप की संभावना नहीं के बराबर होती है.

रिक्टर स्केल का योगदान

भूकंप को मापने का तरीका रिक्टर स्केल है जिससे पता चलता है कि भूकंप की तीव्रता कितनी थी. सामान्य तौर पर रिक्टर स्केल 1 से 9 तक ही होता है. 0-2 तक के रिक्टर स्केल में भूकंप का पता हमें नहीं चलता है ये केवल सीस्मोग्राफ पर रिकॉर्ड होता है. इस स्केल में तीव्रता का हर स्तर पिछले स्तर से 10 गुना ज्यादा गंभीर होता है. इस रिक्टर स्केल में 4 तक तो मध्यम भूकंप की स्थिति होती है यानी ज्यादा नुकसान नहीं होता. 5 के बाद की तीव्रता से दिक्कत शुरू होती है तो 7 के स्तर से शुरू हुई तबाही 8 तक आते-आते विध्वंसकारी तो 9 के बाद सुनामी जैसी प्रबल हो जाती है. जापान में 2011 में आए भूकंप की तीव्रता 9.1 थी उस दौरान जमीन मानो लहरा रही थी.

'जानवरों को भूकंप का अहसास पहले ही हो जाता है'

यूं तो भूकंप लेकर ये कहा जाता है इसका पहले से पता लगाना मुश्किल है. कुछ रिसर्च में ये दावा किया गया है कि जानवरों को भूकंप का अहसास पहले ही हो जाता है. पेरू में किए गए एक रिसर्च में खुलासा हुआ कि भूकंप से पहले जानवरों के व्यवहार में बदलाव देखने को मिला था. इस रिसर्च के मुताबकि पेरू में 7 की तीव्रता का भूकंप आने से पहले यानचागा नेशनल पार्क के जानवरों के व्यवहार में बदलाव देखने को मिला और वो उस जगह को छोड़कर जाने लगे थे. इटली में 2009 में 6.3 तीव्रता का भूकंप आया, वहां भी जानवरों के व्यवहार में बदलाव दिखा. 1975 में चीन के हाईचेंग शहर में 7.3 का भूकंप आने से कुछ दिन पहले शहर के कुत्तों के व्यवहार में बदलाव दिखा तो प्रशासन ने भूकंप की आशंका से शहर खाली करा दिया. इस कारण से भूकंप आने के बाद ज्यादा लोगों की मौत नहीं हुई.

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