Haridwar Kumbh 2021: सौ साल पहले हरिद्वार कुंभ में संतों ने रचा था इतिहास, पढ़ें अनोखा किस्सा
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Haridwar Kumbh 2021: सौ साल पहले हरिद्वार कुंभ में संतों ने रचा था इतिहास, पढ़ें अनोखा किस्सा

हरिद्वार (Haridwar Kumbh 2021) में मां गंगा के तट पर कुंभ के पावन मेले (Kumbh Mela) में उसे राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) का स्वरूप प्रदान किया गया था. वर्ष 1915 में गंगा बांध निर्माण के विरोध में महामना मदन मोहन मालवीय (Mahamana Madan Mohan Malviya) के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा था.

कुंभ मेला

नई दिल्ली: कुंभ (Haridwar Kumbh 2021) के मेले से कई ऐतिहासिक किस्से जुड़े हुए हैं, खासकर हरिद्वार कुंभ के मेले से. पिछली शताब्दी में वर्ष 1915 के कुंभ मेले में हरिद्वार की इस पावन धरती पर दो ऐसे ऐतिहासिक पन्ने लिखे गए, जो हमेशा के लिए इतिहास (Kumbh Mela History) में दर्ज हो गए. इन ऐतिहासिक घटनाओं का संबंध भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय (Mahamana Madan Mohan Malviya) के नाम से जुड़ा हुआ है.

  1. कुंभ मेला से जुड़े हैं कई ऐतिहासिक किस्से
  2. संतों को हासिल हुई थी भारी जीत
  3. ब्रिटिश सरकार को माननी पड़ी थी अपनी हार

महामना मदन मोहन मालवीय ने भरी हुंकार 

जब हरिद्वार में ब्रिटिश सरकार (British Government) द्वारा गंगा पर बांध का निर्माण किया जा रहा था तो पंडा समाज उसके खिलाफ था. उनका मानना था कि बंधे जल में अस्थि प्रवाह और कर्मकांड शास्त्रीय दृष्टि से वर्जित हैं. आपको बता दें कि पुरोहितों के इस बड़े आंदोलन का नेतृत्व महामना मदन मोहन मालवीय (Mahamana Madan Mohan Malviya) कर रहे थे. उसी समय 1915 में जब कुंभ मेला (Haridwar Kumbh 2021) लगा तो महामना कुंभ में आए राजा-महाराजाओं का सहयोग लेने के लिए हरिद्वार में जम गए.

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कई रियासतों के राजाओं ने दिया साथ 

अलग-अलग राज्यों से छोटे-बड़े 25 नरेश उस कुंभ में गंगा स्नान (Kumbh Snan) के लिए आए थे. महामना और पुरोहितों ने तीर्थत्व की रक्षा के लिए राजाओं को बांध विरोधी आंदोलन में भाग लेने के लिए राजी कर लिया था. इसका नतीजा यह हुआ कि कुंभ के बाद बांध विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ा और कई रियासतों ने बांध का कार्य रोकने के लिए अपनी सेनाएं हरिद्वार भेज दीं. यह आंदोलन अगले एक वर्ष तक चला था.

अंग्रेजी हुकूमत ने मान ली थी हार

इस आंदोलन के बाद अंग्रेजी हुकूमत (British Rule) और पुरोहितों के बीच वह ऐतिहासिक समझौता हुआ, जो आज भी कायम है. यहां अविच्छिन्न धारा छोड़ी गई और बांध बना. कुंभ पर छेड़े गए आंदोलन और संतों की यह बड़ी जीत थी. इनके सामने अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा. 1915 के कुंभ में महामना मालवीय ने मेला शिविर में अखिल भारतीय हिंदू महासभा (Akhil Bhartiya Hindu Mahasabha) की स्थापना की.

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महामना के आमंत्रण पर इकट्ठा हुई थीं ये हस्तियां

वीर सावरकर (Veer Savarkar), केशव बलिराम हेडगेवार और भाई परमानंद जैसी हस्तियां उस बैठक में महामना के बुलावे पर हरिद्वार पहुंची थीं. दरअसल, हिंदू सभा (Hindu Mahasabha) की स्थापना 1908 में पंजाब में हुई थी. लेकिन हरिद्वार में मां गंगा के तट पर कुंभ के पावन मेले में उसे राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू महासभा का स्वरूप प्रदान किया गया था. कालांतर में इसी महासभा से निकलकर मनीषियों ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayam Sewak Sangh, RSS) की स्थापना की थी.

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