चौपड़ प्रतियोगिता में शिव-पार्वती के बीच हार-जीत को लेकर फंसा पेंच, पढ़ें द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
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चौपड़ प्रतियोगिता में शिव-पार्वती के बीच हार-जीत को लेकर फंसा पेंच, पढ़ें द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज यानि 20 फरवरी को रखा जाएगा. इस दिन भगवान गणेश के छठे स्वरूप की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करने से घर में सुख-शांति कायम रहती है.

सांकेतिक तस्वीर

Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2022: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज यानि 20 फरवरी को रखा जाएगा. इस दिन भगवान गणेश के छठे स्वरूप की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करने से घर में सुख-शांति कायम रहती है. साथ ही घर से नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं. इस दिन द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा जरूर पढ़नी-सुननी चाहिए. आइए जानते हैं द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा

  1. मिलता है संकटों से छुटकारा
  2. कामना होती है पूरी
  3. शिव-पार्वती के बीच हुआ था चौपड़ का खेल 

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Dwijapriya Sankashti Chaturthi Vrat Katha)

वैसे तो संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन उनमें सबसे अधिक प्रचलित कथा शिव और पार्वती के बीच हुई चौपड़ खेल से जुड़ी हुई है. करते हैं कि एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नंदी के पास बैठे थे. तभी माता पार्वती ने शिवजी से चौपड़ खेलने की इच्छा जाहिर की. परंतु, वहां उन दोनों के अलावा कोई और नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका निभाए. इसका निराकरण करने के लिए भगवान शिव और मां पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की. मिट्टी से बने बालक को दोनों ने आदेश दिया कि वह खेल में जीत-हार का फैसला करे. खेल शरू होने पर मां पर्वती बार-बार शिव को मात दे रही थीं. खेल इस क्रम में चलता रहा.

एक बार भूलवश बालक ने माता पार्वती के हारा हुआ घोषित कर दिया. बालक की इस गलती से माता पार्वती को बहुत क्रोध आया. जिसके बाद उन्होंने बालक को श्राप दे दिया. श्राप के प्रभाव से वह बालक लंगड़ा हो गया. बालक ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए मां पार्वती से माफ कर देने के लिए कहा. बालक के बार-बार कहने पर भी माता पार्वती श्राप वापस न ले सकीं, लेकिन वे श्राप से मुक्ति का उपाय बताईं. माता पार्वती ने उस बालक को कहा कि संकष्टी चतुर्थी के दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की उपासना करने के लिए कहा. बालक की उपासना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूरी की.

बालक ने भगवान गणेश से भगवान शिव और पार्वती के पास जाने की भी इच्छा जाहर किया. जिसके बाद भगवान गणेश उस बालक को शिवलोग पहुंचा दिया. बालक जब वहां पहुंचा तो उसे शिवजी ही मिले. शिव ने उस बालक से पूछा कि तुम यहां कैसे पहुंचे तो उसने बताया कि भगवान गणेश की उपासना से उसे वरदान मिला है. ये सब जानने के बाद शिव ने माता पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया. जिसके बाद माता पार्वती प्रसन्न होकर वापस कैलाश लौट आईं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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