Shri Digambar Ani Akhada News: प्रयागराज में होने जा रहे महाकुंभ में साधु-संतों के 13 अखाड़े भाग लेंगे. इनमें वैष्णव संप्रदाय का सबसे बड़ा श्री दिगंबर अणि अखाड़ा भी शामिल है. इस अखाड़े का उद्भव अयोध्या से हुआ लेकिन अब मुख्यालय गुजरात में है.
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History of Shri Digambar Shri Digambar Ani Akhara (Sabarkantha): यूपी के प्रयागराज में 13 जनवरी से लगने जा रहे महाकुंभ में साधु-संतों के 13 अखाड़े भी लाखों साधुओं के साथ शामिल होने जा रहे हैं. इन अखाड़ों में शैव और वैष्णव मत के मानने वाले दोनों हैं. अपनी अखाड़ों की सीरीज में आज हम आपको वैष्णव संप्रदाय के श्री दिगंबर अनी अखाड़ा (साबरकांठा) के बारे में बताने जा रहे हैं.
आदि शंकराचार्य ने की स्थापना
धार्मिक विद्वानों के मुताबिक, आदि शंकराचार्य ने विदेशी आक्रमणकारियों और जबरन धर्मांतरण से हिंदुओं को बचाने किले देश में 7 दशनामी अखाड़े स्थापित किए थे. कालांतर में इनकी संख्या बढ़कर 13 हो गई. इन अखाड़ों से देशभर में लाखों साधु-संत जुड़े हुए हैं. ये अखाड़े भारतीय परंपराओं और वैदिक धर्म के ध्वजवाहक माने जाते हैं. आमतौर पर इन अखाड़ों के साधु नहीं आते और अपने आश्रमों, मंदिरों या तीर्थांटन में प्रभु आराधना कर समय गुजारते हैं.
इनमें में बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं, जिनके नाम श्री दिगम्बर अणि अखाड़ा, श्री निर्वानी अणि अखाड़ा और श्री पंच निर्मोही अणि अखाड़ा है. इन तीनों में से श्री दिगम्बर अणि अखाड़ा सबसे बड़ा है. जबकि बाकी दोनों अखाड़े इसके सहायक के रूप में काम करते दिखते हैं. श्री दिगम्बर अणि अखाड़ा में अणि का अर्थ समूह या छावनी. यानी एक छावनी के रूप में एकत्रित होकर रहने वाले साधु.
सफेद वस्त्र पहनते हैं श्रीदिगंबर अखाड़े के साधु
इस अखाड़े के साधुओं को तिलक लगाने के अंदाज से पहचाना जा सकता है. शैव संप्रदाय के अखाड़ों के साधु जहां त्रिपुंड्र यानी त्रिशूल जैसा तिलक लगाते हैं. वहीं श्री दिगंबर समेत वैष्णव अखाड़ों के साधु अपने माथे पर उर्ध्वपुंड्र तिलक लगाते हैं. इसमें तीन चीजें आती हैं, जिसमें तिलक, जटाजूट और सफ़ेद कपड़े शामिल हैं. श्री दिगंबर अखाड़ा नाम सुनकर काफी लोगों को यह भ्रम होता होगा कि उसके साधु निर्वस्त्र रहते होंगे लेकिन ऐसा नहीं है. इस अखाड़े के साधु सफेद धोती-कुर्ता पहनते हैं.
श्री दिगंबर अनि अखाड़े के देशभर में 450 से ज्यादा मठ-मंदिर हैं, जिनमें 2 लाख से ज्यादा वैष्णव संत रहकर प्रभु की उपासना करते हैं. यह अखाड़ा चार पट्टियों के समूह में गठित है. वैष्णव पंरपरा से जुड़े निर्वाणी और निर्मोही अखाड़े धर्म प्रचार में इसकी सहयोगी सेना के रूप में काम करते हैं.
5 रंगों का है श्री दिगंबर अणि अखाड़े का ध्वज
इस अखाड़े से जुड़े साधु सफेद वस्त्र पहने संड़सा-चिमटाधारी होते हैं. उनके गले में गुच्छे की तरह सजी कंठीमला और लंबी लटों से शोभित जटाजूट रहती है, जो उन्हें निराला रूप प्रदान करती है. श्री दिगंबर अणि अखाड़े का ध्वज 5 रंगों का होता है. इस ध्वज पर भगवान हनुमान की फोटो दिखती है.
जानकारी के मुताबिक इस अखाड़े के मौजूदा प्रमुख कृष्णदास महाराज हैं. वहीं देश के प्रमुख धार्मिक नगरों जैसे कि उज्जैन, जगन्नाथपुरी, वृंदावन, नासिक, अयोध्या और चित्रकूट में एक-एक स्थानीय श्रीमहंत है. गुजरात के साबरकांठा में इस अखाड़े का सबसे बड़ा आश्रम है, जहां पर हजारों साधु रहकर प्रभु आराधना करते हैं. यह अखाड़ा भगवान विष्णु की पूजा और शिक्षाओं के लिए समर्पित है.
हनुमानगढ़ी में सुने जाते हैं सारे विवाद
अखाड़े के सचिव श्रीमहंत सत्यदेव दास के अनुसार, करीब 500 वर्ष पहले अयोध्या में इस अखाड़े की स्थापना हुई. इसके अखाड़े के ध्वज में 4 पट्टियां हैं- सागरिया, उज्जैनिया, हरिद्वारी और बसंतिया. हर पट्टी में तीन जमातें होती हैं, खालसा, झुंडी और डुंडा. इस अखाड़े से जुड़े सारे आपसी विवाद अयोध्या के हनुमानगढ़ी में सुने जाते हैं. वहां की परंपरा के अनुसार ही इस पंरपरा के वैष्णव संतों के विवादों का निबटारा होता है. इस अखाड़े के पास दान से मिली अपनी संपदा और खेती की जमीन है, जिससे साधु-संन्यासियों के लिए भोजन, ठहरने, वस्त्र और तीर्थांटन के लिए दान का इंतजाम होता है.
महाकुंभ के समय ही होता है श्रीमहंत का चुनाव
सचिव बताते हैं कि श्री दिगंबर अणि अखाड़े में सर्वोच्च पद श्रीमहंत का है. इसका हर 12 साल बाद महाकुंभ के दौरान चुनाव होता है. इस अखाड़े के अधीन कई उप अखाड़े भी गठित हैं. उनके नाम हरिव्यासी निरावलंबी अखाड़ा, निरावलंबी अखाड़ा, खाकी अखाड़ा, संतोषी अखाड़ा और हरिव्यासी अखाड़ा हैं. वे इस प्रमुख अखाड़े के सहायक अंग के रूप में काम करते हैं.