Zee जानकारी: 'जलधारा' नहीं 'जीवनधारा' सूख रही है
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Zee जानकारी: 'जलधारा' नहीं 'जीवनधारा' सूख रही है

Zee जानकारी: 'जलधारा' नहीं 'जीवनधारा' सूख रही है

मेरे हाथ में इस वक्त एक गिलास है, जिसमें पानी भरा हुआ है. लेकिन अगर मैं आपसे कहूं कि इस गिलास में सिर्फ पानी नहीं बल्कि एक जीता जागता व्यक्ति है, तो शायद आपको यकीन नहीं होगा. लेकिन ये बात पूरी तरह से सच है.

आज पूरी दुनिया में World Water Day यानी विश्व जल दिवस मनाया जा रहा है और पानी को बचाने की कसमें खाई जा रही हैं. भारत के नज़रिए से देखा जाए तो हमारा समाज और हमारा सिस्टम, इस पानी की असली कीमत को समझ नहीं पाया है. हमारे देश में पानी को मुफ़्त की चीज़ समझा जाता है. और उसे बिना किसी हिचक के बर्बाद किया जाता है. आपने भी ऐसा कई बार किया होगा कि एक गिलास पानी में से एक या दो घूंट पानी पीकर, बाकी का बचा हुआ पानी आपने फेंक दिया होगा. ये भी पानी की बर्बादी है.

हमारे देश में पानी के स्रोत खाली हो रहे हैं. हमारा देश पानी वाली कंगाली की तरफ बढ़ रहा है. इस तरफ पूरे देश और दुनिया का ध्यान खींचने के लिए आज हम एक गहरा DNA टेस्ट कर रहे हैं. इस विश्लेषण में आंकड़े हैं. तमिलनाडु सहित, देश के सूखाग्रस्त इलाक़ों के पीड़ित किसानों की तकलीफ है. और नदियों को जीवित व्यक्ति का दर्जा दिए जाने के फैसले की ज़मीनी हकीकत भी है.

हम उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले का विश्लेषण भी करेंगे जिसमें गंगा और यमुना नदी को जीवित व्यक्ति का वैधानिक दर्जा दिया गया है. हाईकोर्ट के इस फैसले के मुताबिक सिर्फ गंगा और यमुना नदी ही नहीं. बल्कि इनकी साहयक नदियां, और इनसे निकलने वाली जल धाराओं का संरक्षण भी किसी जीवित व्यक्ति की तरह किया जाएगा. लेकिन क्या अदालत के कह देने से ज़मीनी स्तर पर सब कुछ ठीक हो जाता है? शायद नहीं. क्योंकि पानी को स्वच्छ रखना समाज का संस्कार है. और ये संस्कार हमारे देश से गायब होता जा रहा है.

United Nations की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में 180 करोड़ लोग ऐसा पानी पीने पर मजबूर हैं, जो पूरी तरह से दूषित है. गंदा पानी पीने की वजह से हर साल दुनिया में 8 लाख 42 हज़ार लोगों की मौत हो जाती है. भारत की नदियां भी प्रदूषण का शिकार हैं, यानी गंगा और यमुना ऐसे जीवित व्यक्ति हैं जो ICU में भर्ती हैं और इनकी जान बचाने के लिए इन्हें Ventilator पर रखा गया है. 

जब नदियां सूखती है तो सिर्फ नदियों की ही जान नहीं जाती, बल्कि इंसानों की भी मौत होती है, तमिलनाडु देश का एक ऐसा ही राज्य है. जहां नदियों के सूखने की वजह से लोगों की जान जा रही है, सूखा पड़ने की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे हैं, और जो किसान बच गए हैं वो दिल्ली में आकर प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार से राहत पैकेज मांग रहे हैं. ये किसान कोई साधारण प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, बल्कि इन किसानों के हाथों में इंसानों की खोपड़ियां है. इन किसानों का दावा है कि ये Skull यानी खोपड़ियां उन किसानों की हैं, जिन्होंने सूखे और कर्ज़ से परेशान होकर अपनी जान दी है. 

अपने 12 किसान मित्रों की खोपड़ियां हाथ में लेकर ये किसान दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इन किसानों की मांग है कि तमिलनाडु को सूखे से निपटने के लिए 40 हज़ार करोड़ रुपए का राहत पैकेज दिया जाए और किसानों को कर्ज़ में छूट दी जाए. इन किसानों ने वित्त मंत्री से मुलाकात करके अपनी मांगें भी उनके सामने रखी हैं. लेकिन इन किसानों का कहना है कि इनका प्रदर्शन तब तक बंद नहीं होगा, जब तक इनका कर्ज़ माफ नहीं कर दिया जाता है.

आंकड़ों के Lens से देखा जाए. तो देश के 18 राज्य ऐसे हैं, जहां Ground Water तेज़ी से कम हो रहा है. इनमें सबसे बुरा हाल तमिलनाडु का ही है. तमिलनाडु में करीब 374 इलाके ऐसे हैं. जहां Ground Water की स्थिति बहुत चिंताजनक है. इन इलाकों में ज़मीन से जितना पानी निकाला जा रहा है, उसके मुकाबले बहुत कम पानी वापस ज़मीन में पहुंच पाता है. आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर 2016 से लेकर अब तक तमिलनाडु में करीब 254 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. सिर्फ तमिलनाडु ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत के कर्नाटक और केरल में भी सूखा पड़ने के आसार हैं. अगर दक्षिण भारत में सूखा पड़ता है तो ये पिछले 140 वर्षों के दौरान पड़ने वाला दूसरा सबसे भयंकर सूखा होगा. आखिरी बार 1960 में दक्षिण भारत में इतना भयंकर सूखा पड़ा था.

पिछले साल दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्व का मॉनसून ठीक से सक्रिय नहीं हो पाया था, जिसकी वजह से दक्षिण भारत में सूखे की आशंका पैदा हो गई है. 
कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशय इस हद तक सूख चुके हैं कि इन आने वाले दिनों में इन राज्यों में पीने के पानी की भी कमी हो सकती है. इसी महीने 2 तारीख को Central Water Commission ने एक रिपोर्ट जारी की थी, इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के 91 बड़े जलाशयों में क्षमता के मुकाबले सिर्फ 41 प्रतिशत पानी मौजूद है. इसी रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में मौजूद 31 reservoirs यानी जलाशयों में सिर्फ 20 प्रतिशत पानी है. अगर इसमें से तेलंगाना में मौजूद जलाशयों को हटा दिया जाए, तो ये आंकड़ा और कम हो सकता है. क्योंकि तेलंगाना में मौजूद 2 जलाशयों में 62 प्रतिशत पानी है. इसी तरह केरल के सभी बड़े जलाशयों में इस वक्त 50 प्रतिशत से कम पानी मौजूद है. केरल के दूसरे सबसे बड़े जलाशय में क्षमता के मुकाबले सिर्फ 6 प्रतिशत पानी मौजूद है.

यानी एक तरफ तो हम नदियों को बचाने के लिए उन्हें जीवित प्राणी का दर्जा दे रहे हैं और दूसरी तरफ हम खुद ही नदियों और जलाशयों का Life Support System बंद करके, उन्हें मरने पर मजबूर कर रहे हैं. लेकिन हमें ये याद रखना होगा कि अगर हमारी नदियां, जलाशय और पानी के दूसरे स्रोत मरते रहेंगे, तो फिर हम इंसानों का बचना भी बहुत मुश्किल हो जाएगा.

अंतर्राष्ट्रीय संस्था WaterAid के मुताबिक ग्रामीण भारत में करीब 6 करोड़ 30 लाख लोग ऐसे हैं, जिनकी पहुंच साफ पानी तक नहीं है. इसके अलावा दुनिया भर के 10 प्रतिशत प्यासे लोग भारत में रहते हैं. भारत में प्रति वर्ष Per Capita Water Availability की बात करें, तो इसके आंकड़े आपको परेशान कर सकते हैं. वर्ष 1951 में भारत में प्रति व्यक्ति 54 लाख 10 हज़ार लीटर पानी प्रतिवर्ष उपलब्ध हुआ करता था, जो सन 1991 में  23 लाख 1 हज़ार लीटर हो गया, सन 2001 में 19 लाख 2 हज़ार लीटर हो गया और 2011 में 15 लाख 88 हज़ार लीटर प्रति वर्ष रह गया. जबकि वर्ष 2025 में भारत में Per Capita Water Availability सिर्फ 13 लाख 99 हज़ार लीटर रह जाएगी. यानी प्रतिदिन करीब 3 हज़ार 800 लीटर पानी प्रति व्यक्ति उपबल्ध होगा. वर्ष 2050 तक पूरी दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी ऐसे इलाकों में रहने लगेगी, जहां पानी की बहुत ज्यादा कमी है.

आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरी दुनिया की महिलाएं. पानी लाने के लिए हर रोज़ कुल मिलाकर 20 करोड़ घंटे की मेहनत करती हैं. अगर 20 करोड़ घंटों को वर्ष में बदल दिया जाए तो करीब 23 हज़ार वर्ष के बराबर होगा. यानी दुनिया भर की महिलाएं सिर्फ पीने का पानी हासिल करने के लिए 23 हज़ार वर्ष के बराबर मेहनत करती हैं. अगर हिसाब लगाया जाए तो ये बहुत लंबा समय है. आप ये भी कह सकते हैं कि जो महिला पाषाण युग यानी Stone Age में पानी भरने निकली थी. वो 2017 में वापस लौटकर आ पाती.

यहां आपके लिए ये समझना भी ज़रुरी है, कि भारत सहित पूरी दुनिया तक स्वच्छ पानी क्यों नहीं पहुंच पाता और भविष्य में क्या हो सकता है?  आज हमने रिसर्च की मदद से इसकी वजहों को तलाशने की कोशिश की है.

सबसे बड़ी वजह है, जनसंख्या.. फिलहाल दुनिया की जनसंख्या 750 करोड़ है. वर्ष 2030 तक पूरी दुनिया की आबादी 850 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है, जबकि वर्ष 2050 तक ये आंकड़ा 970 करोड़ तक पहुंच जाएगा. ऐसी स्थिति में पानी की मांग भी बहुत ज़्यादा होगी. 

कुछ अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के मुताबिक 2022 तक भारत की जनसंख्या दुनिया में सबसे ज़्यादा हो जाएगी. 2022 से 2030 के बीच भारत की जनसंख्या 150 करोड़ के आंकड़े को पार कर सकती है. इसके अलावा 2050 तक भारत के शहरों की आबादी में 55 फीसदी से भी ज़्यादा का इज़ाफा होगा.

आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत के किसान, चीन के मुकाबले दोगुना भूमिगत जल खर्च करते हैं. विडंबना ये है कि ज़मीन के ज़्यादा बड़े हिस्से पर खेती करने और ज़्यादा पानी इस्तेमाल करने के बावजूद चीन के मुकाबले भारत में चावल का उत्पादन कम होता है. और आने वाले समय में भारत के कृषि क्षेत्र की ये प्यास और बढ़ने वाली है. भारत में 2050 तक कृषि क्षेत्र में पानी की मांग में 80% से भी ज़्यादा का इज़ाफा होगा.

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