Zee जानकारी: गंगा-यमुना के प्राण लौटाने वाले फैसले का विश्लेषण
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Zee जानकारी: गंगा-यमुना के प्राण लौटाने वाले फैसले का विश्लेषण

Zee जानकारी: गंगा-यमुना के प्राण लौटाने वाले फैसले का विश्लेषण

जैसा कि हमनें आपको पहले बताया था कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए, गंगा और यमुना नदियों को जीवित प्राणी का दर्जा दे दिया है. सिर्फ गंगा और यमुना ही नहीं बल्कि इनकी सहायक नदियों और जलधाराओं को भी ये दर्जा हासिल होगा. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट के डायरेक्टर, उत्तराखंड के Chief Secretary और Advocate General को गंगा और युमना नदियों का Parent घोषित किया है. यानी इन नदियों के स्वास्थ्य और देखभाल की जिम्मेदारी इन्हीं तीनों लोगों की होगी.

आपको बता दें कि करीब 1 हफ्ता पहले न्यूजीलैंड की संसद ने भी अपने देश की एक नदी Whanganui को जीवित प्राणी का दर्जा दिया था. न्यूजीलैंड की ससंद में बिल पास होने के बाद Whanganui दुनिया की पहली ऐसी नदी बन गई थी, जिसे किसी जीवित व्यक्ति के अधिकार, और जिम्मेदारियां दी गई हैं. और अब गंगा और यमुना भी इन विशेष नदियों के परिवार का हिस्सा बन गई हैं. लेकिन अभी ये साफ नहीं है कि इस फैसले का मतलब क्या है.? क्या अब नदियों को गंदा करने वालों के खिलाफ वैसे ही कार्रवाई की जा सकेगी. जैसी कार्रवाई किसी साधारण व्यक्ति के साथ आपराधिक वारदात करने वाले के खिलाफ की जाती है. 

क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता, तो फिर ये सिर्फ एक सांकेतिक फैसला माना जाएगा. जिससे नदियों की हालत में कुछ खास सुधार आने की उम्मीद नहीं की जा सकती. इस फैसले की कॉपी मेरे हाथ में है, और मैं आपको इसके महत्वपूर्ण अंश पढ़कर सुनाना चाहाता हूं.

आपको बता दें कि गंगा Basin में  हर रोज़ करीब 1 करोड़ 20 लाख लीटर Sewage इकट्ठा होता है. जबकि इसमें से प्रतिदिन सिर्फ 4 हज़ार मिलियन लीटर sewage का ही Treatment हो पाता है. उद्योगो से निकलने वाला 260 मिलियन लीटर कचरा भी हर रोज़ गंगा नदी में बहा दिया जाता है. कई इलाके तो ऐसे हैं, जहां गंगा और यमुना नदी में ऑक्सीजन की मात्रा शून्य हो चुकी है. हम आपको DNA में दिखा चुके हैं कि कैसे नदियों का ज़हरीला पानी आपके घर तक पहुंच चुका है और इन नदियों के पानी में उगाई गई सब्ज़ियां तक ज़हरीली हो चुकी हैं. हमनें आपको दिखाया था कि कैसे यमुना नदी में हो रहे प्रदूषण की वजह से इस नदी के किनारे बसे शहरों और गांवों में कैंसर के मामले बढ़ रहे है. लेकिन सच ये है कि ये नदियां खुद जानलेवा बीमारियों से पीड़ित हैं. और इन्हें इलाज की सख्त ज़रूरत है. हमें लगता है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट का फैसला इसमें काफी मददगार साबित हो सकता है.

जुलाई 2014 में गंगा की सफाई के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरूआत हुई थी. इस रकम को 5 वर्षों में खर्च किया जाना है. लेकिन एक रिपोर्ट के अगस्त 2016 तक इसमें से सिर्फ 2958 करोड़ ही खर्च किए जा सके, और फिर भी गंगा के हालात में कोई सुधार दिखाई नहीं दिया. इस योजना के 3 वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन गंगा की हालत वैसी की वैसी है. हमारे देश में नेता लोगों की आस्था के नाम पर वोट बैंक की राजनीति करते हैं लेकिन आस्था का सबसे बड़ा केंद्र मानी जाने वाली गंगा औऱ यमुना नदी के हालात सुधारने के लिए कोई कुछ नहीं करता. 

हमारे देश की आस्था और संस्कारों में गंगा और यमुना का बहुत महत्व है. हमारे देश में इन नदियों की पूजा की जाती है. लोग इन्हें इतना पवित्र मानते हैं कि इनके पानी को बोतलों में भरकर घर ले जाते हैं और इस पानी को अपने पूजाघर में किसी ईश्वर की तरह रखते हैं. लेकिन इसके बावजूद यही लोग गंगा और यमुना जैसी नदियों को गंदा करने से चूकते नहीं हैं. ये हमारे समाज के दोहरे मापदंड हैं.

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