Zee Jaankari: देव आनंद के 'कर्मयोगी वाले जीवन' का विश्लेषण
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Zee Jaankari: देव आनंद के 'कर्मयोगी वाले जीवन' का विश्लेषण

गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है कि...व्यक्ति को पूरे समर्पण के साथ अपना कर्म करना चाहिए . उसके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए . क्योंकि जब हमें मन के अनुसार नतीजे नहीं मिलते हैं, तो हमें दुख होता है . इसलिए जीवन में अगर सुखी रहना है, और आनंद को प्राप्त करना है, तो सिर्फ कर्म पर ध्यान लगाइए .

Zee Jaankari: देव आनंद के 'कर्मयोगी वाले जीवन' का विश्लेषण

गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है कि...व्यक्ति को पूरे समर्पण के साथ अपना कर्म करना चाहिए . उसके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए . क्योंकि जब हमें मन के अनुसार नतीजे नहीं मिलते हैं, तो हमें दुख होता है . इसलिए जीवन में अगर सुखी रहना है, और आनंद को प्राप्त करना है, तो सिर्फ कर्म पर ध्यान लगाइए . महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण..अर्जुन के Guide बने थे . आज हम हिन्दी सिनेमा के Guide देव आनंद के जीवन दर्शन का विश्लेषण करेंगे . श्री कृष्ण की तरह देव आनंद भी जिंदगी भर कर्म को अहमियत देते रहे और आखिरी क्षणों तक कर्मयोगी बने रहे .

आज हिन्दी सिनेमा के Evergreen हीरो देव आनंद का जन्मदिन है और अगर देव साहब आज जीवित होते... तो वो आज 96 वर्ष के हो जाते . देवानंद से प्रेरणा लेकर आप अपने जीवन को सदाबहार बना सकते हैं . बहुत सारे लोगों को शायद पता नहीं होगा कि देव आनंद का असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद था . आज हम देवानंद पर इस गैर फिल्मी विश्लेषण की शुरुआत Flashback में जाकर करना चाहते हैं .

देव आनंद का व्यक्तित्व इतना बड़ा है कि उनके जन्मदिन के ज़िक्र को सिर्फ आज के इतिहास वाले सेगमेंट में समेटना बहुत मुश्किल था . हमें लगा कि जिस व्यक्ति को हिंदी सिनेमा का गाइड कहा जाता है...हिंदी सिनेमा में जिनका करियर 59 वर्ष का रहा हो, ऐसे व्यक्तित्व की व्याख्या करना बहुत ज़रूरी है .देव आंनद ने अपने करियर की शुरुआत 85 रुपये के वेतन पर एक कंपनी में Accountant की नौकरी के साथ की थी . बतौर हीरो देव आनंद की पहली फिल्म 1946 में आई थी.. जिसका नाम था.. हम एक हैं

देव आनंद वक़्त के बहुत पाबंद थे... किसी को Appointment देने के बाद वो हमेशा वक़्त से पहले पहुंचते थे.. उन्हें कहीं भी हड़बड़ी में.. और देर से पहुंचना पसंद नहीं था... यही वजह है कि देव आनंद की घड़ी हमेशा बीस मिनट आगे रहती थी.. यानी वो अपनी घड़ी का समय मिलाते वक़्त हमेशा उसे मौजूदा समय से बीस मिनट आगे रखते थे.

. फिर चाहे वो हिंदुस्तान में हों या फिर किसी और देश में मौजूद हों . आप ये भी कह सकते हैं कि देव आनंद हमेशा वक़्त से आगे रहते थे और उन्होंने अपने वक़्त से आगे की फिल्में भी बनाई . देव आनंद ना सिर्फ समय का महत्व समझते थे उन्होंने जीवन के हर एक क्षण का भरपूर इस्तेमाल किया और वो आखिरी वक्त तक फिल्में बनाते रहें .

आज हम आपको देव आनंद की काम के प्रति दीवानगी के आधार पर वो तीन बातें बताएंगे जो आप उनके जीवन से सीख सकते हैं . पहली बात ये है कि आपको जीवन में कभी थकना नहीं चाहिए, कभी रुकना नहीं चाहिए . देव आनंद की फिल्मी यात्रा वर्ष 1946 से आरंभ हुई..जो वर्ष 2005 में समाप्त हुई . इस दौरान 59 वर्षों में देव आनंद ने 117 फिल्मों में अभिनय किया .

36 फिल्मों का निर्माण किया...और 19 फिल्मों का निर्देशन किया . वर्ष 2005 में उनकी आखिरी फिल्म मिस्टर प्राइम मिनिस्टर रिलीज़ हुई थी . उन्होंने इस फिल्म में अभिनय करने के साथ साथ इसका निर्देशन भी किया था .अंतिम फिल्म के निर्माण के समय देव आनंद की उम्र 82 वर्ष थी . देव साहब ने 65 साल की उम्र के बाद 12 से ज्यादा फिल्मों का निर्माण किया .

बिना रुके, बिना थके और बिना हार माने...जीवन के आखिरी पलों तक काम करने की ललक देव आनंद को औरों से जुदा करती थी और उनका जीवन हमें सिखाता है कि जीवन का असली आनंद...उसकी यात्रा में है मंज़िल में नहीं . और जो लोग सिर्फ मंज़िल का ध्यान रखते हैं वो जीवन के सफर में जल्दी खर्च हो जाते हैं. देव आनंद प्रख्यात उपन्यासकार आर.के. नारायण से काफी प्रभावित थे और उनके उपन्यास 'गाइड' पर फिल्म बनाना चाहते थे. आर.के. नारायण की स्वीकृति के बाद देव आनंद ने हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में फिल्म 'गाइड' का निर्माण किया जो देव आनंद के फिल्मी करियर की पहली रंगीन फिल्म थी .

गाइड को देव आनंद की सबसे बड़ी फिल्म माना जाता है . देव आनंद प्रयोग करने से नहीं डरते थे और गाइड इसी की मिसाल है . ये अपने वक्त से आगे की फिल्म थी इसलिए आज हमने इस फिल्म का एक सबसे लोकप्रिय Scene आपके लिए निकाला है . इसे देखकर आप समझ जाएंगे कि देवा आनंद को ना सिर्फ तत्कालीन सामाजिक ताने बाने की शानदार समझ थी..

बल्कि उनकी आध्यात्मिक सोच भी अथाह गहराइयों को छूती थी. देव आनंद के जीवन से समझने वाली दूसरी बात ये है कि आपको असफलताओं से कभी निराश नहीं होना चाहिए . 80 के दशक में देव आनंद की फिल्में फ्लॉप होना शुरु हो गई . उनकी फिल्मों का मजाक उड़ाया जाने लगा .आलोचक देव साहब की फ्लॉप फिल्मों के लिए कहने लगे थे कि मुट्ठी भर लोग भी उनकी फिल्म देखने नहीं जाते .

लेकिन देव आनंद को इन आलोचना से कोई फर्क नहीं पड़ा . वो फिल्में बनाते रहे . ऐसे ही आपको भी जीवन में आलोचनाओं की परवाह नहीं करनी चाहिए . निराशा से हार नहीं माननी चाहिए अगर आपके काम की प्रशंसा सिर्फ मुट्ठी भर लोग भी कर रहे हैं तो भी आप निरंतर अपने प्रयासों में जुटे रहें . देव आनंद को आप सही मायनों में भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय Star भी कह सकते हैं .

भारत के बाहर जितनी प्रसिद्धि देव साहब को मिली, उतनी शायद ही किसी को मिली हो . चार्ली चैपलिन सहित तमाम बड़े International Superstars उनके मुरीद थे . देव आंनद अपने जमाने के सबसे हैंडसम हीरो थे . ऐसा कहा जाता है कि कोई व्यक्ति कितना बड़ा है ये उससे जुड़ी हुई अफवाहों से पता चलता है . देव आनंद के साथ भी कुछ ऐसा ही था .

देव आनंद के बारे में ऐसी अफवाह थी कि उनके काले कपड़े पहन कर बाहर निकलने पर रोक लगा दी गई है, क्योंकि उन्हें काले कपड़ों में देखने पर लड़कियां अपनी सुध-बुध खो देती थीं. देव साहब ने अपनी आत्मकथा में माना था कि उन्हें लेकर ये अफवाह फैली थी... और उन्होंने ये स्पष्ट किया था कि उन पर काले कपड़े पहनने को लेकर कोई रोक नहीं लगाई गई थी. देव आनंद हमेशा फिट रहने पर ज़ोर देते थे...

और कम खाते थे. एक दौर में उन्हें कोल्ड ड्रिंक्स बहुत पसंद थी.. लेकिन बाद में सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए उन्होंने कोल्ड ड्रिंक्स पीना बंद कर दिया . देव आनंद अपने समय में सबसे बड़े Fashion Icon माने जाते थे . उन्हें fashionable कपड़े पहनने का काफी शौक था.. उनके पास लगभग 800 Jackets थीं और लाल रंग उनका सबसे पसंदीदा रंग था .

लाल रंग की एक टाई उन्होंने मुझे भी गिफ्ट की थी . ये बात आज से 13 वर्ष पहले की है . आज ही के दिन यानी 26 सितंबर 2006 को मैं देव साहब के जन्मदिन के मौके पर उनका इंटरव्यू करने के लिए मुंबई गया था . उनके इंटरव्यू के लिए उस दिन मैंने सूट पहना था, लेकिन मैंने कोई टाई नहीं पहनी थी . इंटरव्यू से पहले देव साहब ने मुझसे कहा कि इस सूट के साथ लाल टाई अच्छी लगेगी .

हमने उन्हें अपनी मजबूरियां बताईं कि हमारे पास कोई टाई नहीं है, ऐसे ही इंटरव्यू कर लेते हैं . लेकिन देव साहब माने नहीं, वो अंदर गए और अपने wardrobe से लाल रंग की एक टाई निकालकर लाए . उनका बड़प्पन देखिए, उन्होंने खुद अपने हाथों से वो टाई बांधी और मुझे पहनाई . और फिर देव साहब का वो इंटरव्यू मैंने उसी लाल टाई के साथ किया था .

इसके बाद देव साहब ने वो लाल टाई मुझे गिफ्ट कर दी. यानी जन्मदिन उनका था, लेकिन गिफ्ट मुझे मिला . उस दिन मेरे सामने देव साहब ने केक काटा था . जिसका वीडियो आप देख रहे हैं . ये हमारे एक दर्शक ने हमें भेजा था . इस दौरान वहां पर देव आनंद के निकट सहयोगी मोहन चूड़ीवाला भी मौजूद थे..

उन्होंने भी देव साहब से जुड़ी कुछ यादें हमारे साथ शेयर की थी . देव साहब तो इस दुनिया से चले गए लेकिन हर वर्ष उनके जन्मदिन के मौके पर उनसे तोहफे में मिली वो टाई मुझे बहुत स्पेशल Feel करवाती है. हमने आपके लिए अपनी लाइब्रेरी से आज देव साहब का एक पुराना इंटरव्यू निकाला है . ये इंटरव्यू आज से 18 वर्ष पहले नवंबर 2001 में मैंने न्यूयॉर्क की सड़कों पर किया था . इस इंटरव्यू के कुछ अंश मैं आज आपके साथ शेयर करना चाहता हूं...

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