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लखनऊ: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में किसकी सरकार बनेगी, ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा, लेकिन एग्जिट पोल में ‘कमल’ खिलता दिखाई दे रहा है. इस सियासी संग्राम की शुरुआत से ही हर दल और नेता अपनी-अपनी जीत के दावे करते आ रहे हैं. एग्जिट पोल सामने आने के बाद भी जीत के दावों का सिलसिला जारी है. हालांकि, इतिहास बताता है कि ऐसे दावे करने वालों का हाल अच्छा नहीं रहता.
1989 से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में जितने भी विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Election ) हुए हैं, यदि उसके आंकड़ों पर नजर डालें तो 80 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है. इस लिहाज से चुनावों में करीब 20 प्रतिशत प्रत्याशी ही अपनी जमानत बचा पाते हैं. इस बार तस्वीर क्या रहती है, ये 10 मार्च यानी काउंटिंग वाले दिन स्पष्ट हो जाएगा.
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इस बार के विधानसभा चुनाव में कुल 4441 प्रत्याशी मैदान में हैं. जबकि 2017 में ये संख्या 4853 थी. इस बार सिर्फ चार सीटें ही ऐसी हैं, जहां 15 से अधिक प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं. बता दें कि विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए हर प्रत्याशी को 5,000 रुपये की राशि जमा करनी होती है, जिसे जमानत राशि (Security Deposit) कहते हैं. ये राशि प्रत्याशी को तभी वापस मिलती है जब उसे अपनी विधानसभा सीट में पड़े कुल वैध मतों का छठा हिस्सा मिला हो. ऐसा न होने पर प्रत्याशी की जमानत राशि जब्त हो जाती है.
उत्तर प्रदेश में जितने भी चुनाव हुए हैं उनमें सबसे अधिक प्रत्याशियों की जमानत 1993 में जब्त हुई थी. 1993 में करीब 88.95 प्रतिशत प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे. उस वक्त कुल 9726 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था, जिसमें से 8652 प्रत्याशी अपनी जमानत जब्त हो गई थी. इसी तरह, 1996 में 4429 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, जिसमें 3244 की जमानत जब्त हो गई थी.
2002 में 5533 कुल उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, जिनमें से 4422 अपनी जमानत बचाने में सफल रहे थे. 2007 में 6086 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे और 5034 की जमानत जब्त हुई थी. वहीं, 2012 में सियासी मैदान में उतरे 6839 प्रत्याशियों में से 5760 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी. 2017 में भी तस्वीर कुछ ऐसी ही रही. तब 4853 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था और इसमें से 3736 प्रत्याशियों को जमानत की राशि जब्त कर ली गई थी.