न बलूनी, न भट्ट और न ही धन सिंह, तीरथ सिंह रावत के सीएम बनने की ये पूरी कहानी
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न बलूनी, न भट्ट और न ही धन सिंह, तीरथ सिंह रावत के सीएम बनने की ये पूरी कहानी

सीएम की रेस में बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और प्रवक्ता अनिल बलूनी, केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, मंत्री धन सिंह रावत, सतपाल महाराज और सांसद अजय भट्ट का नाम लगातार चर्चा में रहा, जबकि तीरथ सिंह रावत को लेकर कोई चर्चा नहीं थी, 

पीएम मोदी से मुलाकात करते धन सिंह रावत और केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक (File Photo))

नई दिल्ली: पौड़ी गढ़वाल से लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के नए सीएम बनेंगे. त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद प्रदेश की राजनीति में हलचल बढ़ गई थी. सीएम की रेस में बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और प्रवक्ता अनिल बलूनी, केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, मंत्री धन सिंह रावत, सतपाल महाराज और सांसद अजय भट्ट का नाम लगातार चर्चा में रहा, जबकि तीरथ सिंह रावत को लेकर कोई चर्चा नहीं थी, लेकिन बीजेपी विधानमंडल दल की बैठक के बाद अचानक तीरथ सिंह रावत का नाम सामने आ गया. इसके चार कारण हैं.

पहला: राजपूत को ही सीएम बनाना
कल से आज सुबह मुख्यमंत्री बनने वालों में कई नाम चर्चा में थे. चूंकि त्रिवेंद्र सिंह रावत राजपूत हैं, और उत्तराखंड में इस समुदाय की संख्या बहुत ज्यादा है. इसलिए बीजेपी किसी और के नाम पर कोई दांव लगाकर प्रदेश की जनता को नाराज नहीं करना चाहती थी. क्योंकि अगले साल प्रदेश में विधान सभा के चुनाव भी होने हैं. ऐसे में राजपूत को ही मुख्यमंत्री बनाने दबाव पार्टी पर था.

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दूसरा: साफ-सुधरी छवि का मिला फायदा
हालांकि धन सिंह रावत भी राजपूत हैं. लेकिन वह भी पौड़ी गढ़वाल से आते हैं. लेकिन तीरथ सिंह रावत के आगे उनका राजनीतिक कद काफी छोटा है. साथ ही तीरथ रावत की इमेज बीजेपी में बेहद सौम्य स्वभाव और किसी गुट का न होना भी है. साथ ही संघ से जुड़ाव उनके पक्ष में गया. हालांकि तीरथ सिंह रावत को पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी का बेहद करीबी माना जाता था. उन्हें खंडूरी का राजनीतिक शिष्य भी कहा जाता था, लेकिन इसके बावजूद तीरथ पार्टी के किसी गुट में नहीं रहे. उन्हें बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी का करीबी भी माना जाता है.

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तीसरा: विधायकों ने किया धन सिंह रावत का विरोध
धन सिंह रावत को लेकर पार्टी का एक धड़ा विरोध में था. वे एक अपेक्षाकृत जूनियर विधायक को मुख्यमंत्री बनाने के खिलाफ थे. इतना ही नहीं धन सिंह रावत को त्रिवेंद्र का खास माना जाता है. ऐसे में लोगों को डर था कि वह कहीं न कहीं उनके प्रभाव में काम करते. विधायकों के विरोध के बाद जब किसी सर्वमान्य और संघ के मानकों पर खरे उतरने वाले नेता की तलाश की गई तो केवल तीरथ सिंह रावत का ही नाम ऐसा था, जिस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं थी. दो बार उत्तराखंड भाजपा के अध्यक्ष रह चुके तीरथ सिंह रावत का कार्यकाल बिना किसी विवाद के रहा. उनकी सबसे बड़ी खूबी यह रही कि हमेशा विवादों से दूर रहे और भाजपा के सभी गुटों को साथ लेकर चले.

चौथा: त्रिवेंद्र सिंह रावत की बन चुकी निगेटिव छवि
त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए देवस्थानम बोर्ड के गठन का फैसला ऐसा है, जिसे लेकर भारी गुस्सा था. मंगलवार को रावत के इस्तीफे के बाद गंगोत्री के तीर्थ पुरोहितों ने आतिशबाजी करके खुशी मनाई, इससे साफ स्पष्ट है कि एक वर्ग में रावत सरकार के प्रति कितना गुस्सा था. गैरसैंण को मंडल बनाने का निर्णय भी कुछ ऐसा ही है. इस पर पूरे कुमाउं में उबाल था. यह बात भी पार्टी आलाकमान को पता थी. शायद ही इसीलिए पार्टी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत का इस्तीफा ले लिया और निर्विवाद छवि वाले तीरथ सिंह को प्रदेश की कमान दी गई.

Video: CM पद के लिए तीरथ सिंह रावत के नाम पर क्यों और कैसे लगी मुहर?

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