Kumbh Mela: जानिए क्या है कुंभ मेले का धर्म और इतिहास, समुद्र मंथन से जुड़ी है ये कहानी
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Kumbh Mela: जानिए क्या है कुंभ मेले का धर्म और इतिहास, समुद्र मंथन से जुड़ी है ये कहानी

कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है. माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई.

 Kumbh Mela: जानिए क्या है कुंभ मेले का धर्म और इतिहास, समुद्र मंथन से जुड़ी है ये कहानी

नई दिल्लीः हरिद्वार महाकुंभ (Haridwar Mahakumbh-2021) का आगाज होने वाला है. 14 जनवरी से इसकी शुरुआत हो जाएगी. और कुंभ मेला 48 दिनों तक चलेगा. महाकुंभ (Mahakumbh) के दौरान देश-विदेश से लोग आकर आस्था की डुबकी लगाएंगे और तब चारों दिशाएं हर-हर गंगे के उद्घोष से गूंज उठेंगी. इस बार कुंभ में चार शाही स्नान हैं.

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 ऐसे बना कुंभ मेला शब्द

कुंभ मेला दो शब्दों कुंभ और मेला से बना है. कुंभ नाम अमृत के अमर पात्र या कलश से लिया गया है जिसे देवता और राक्षसों ने प्राचीन वैदिक शास्त्रों में वर्णित पुराणों के रूप में वर्णित किया. मेला, जैसा कि हम सभी परिचित हैं, एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'सभा' या 'मिलना'. जहां पर ये अमृत की बूंदें गिरी थी उस जगह पर कुंभ का आयोजन होता है. 

करीब 850 साल पुराना इतिहास
इतिहास में कुंभ मेले की शुरुआत कब हुई, किसने की, इसकी किसी ग्रंथ में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है. कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है. माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी. परन्तु इसके बारे में जो प्राचीनतम वर्णन मिलता है वो सम्राट हर्षवर्धन के समय का है, जिसका चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग द्वारा किया गया.

शास्त्रों में कुंभ का इतिहास
शास्त्रों में बताया गया है कि पृथ्वी का एक साल देवताओं का दिन होता है, इसलिए हर बारह साल पर एक स्थान पर पुनः कुंभ का आयोजन होता है.  ऐसी मान्यता है कि 144 साल के बाद स्वर्ग में भी कुंभ का आयोजन होता है इसलिए उस साल पृथ्वी पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है. महाकुंभ के लिए निर्धारित स्थान प्रयाग को माना गया है. 

समुद्र मंथन से भी जुड़ा है इतिहास
कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन से ही हो गई थी. कहा जाता है कि एकबार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया. सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें पूरी बात बताई. तब भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी.

भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर सारे देवता राक्षसों के साथ संधि करके अमृत निकालने की कोशिश में लग गए. समुद्र मंथन से अमृत निकलते ही देवताओं के इशारे पर इंद्र पुत्र 'जयंत' अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ गया. राक्षसों ने अमृत लाने के लिए जयंत का पीछा किया और कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और दानव में 12 दिन तक भयंकर युद्ध होता रहा.

यहां पर छलका अमृत
मंथन में निकले अमृत का कलश हरिद्वार, इलाहबाद, उज्जैन और नासिक के स्थानों पर ही गिरा, इसीलिए इन चार स्थानों पर ही कुंभ मेला हर तीन साल बाद लगता आया है. 12 साल बाद ये मेला अपने पहले स्थान पर वापस पहुंचता है.

इसलिए चार स्थानों पर होता है कुंभ मेला
यही कारण है कि कुंभ के मेले को इन्हीं चार स्थानों पर मनाया जाता है. कुंभ को 4 हिस्सों में बांटा गया है. जैसे अगर पहला कुंभ हरिद्वार में होता है तो ठीक उसके 3 साल बाद दूसरा कुंभ, प्रयाग में और फिर तीसरा कुंभ 3 साल बाद उज्जैन में, और फिर 3 साल बाद चौथा कुंभ नासिक में होता है.

इन दिनों होगा शाही स्नान
इस बार पहला शाही स्नान (Shahi Snan 2021) 11 मार्च, शिवरात्रि के दिन पड़ेगा. दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल, सोमवती अमावस्या के दिन पड़ेगा. तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल, मेष संक्रांति पर पड़ेगा और चौथा शाही स्नान 27 अप्रैल को बैसाख पूर्णिमा के दिन पड़ेगा.

कुंभ मेला 2021 का शुभ मुहूर्त और तिथि
पहला शाही स्नान: 11 मार्च शिवरात्रि
दूसरा शाही स्नान: 12 अप्रैल सोमवती अमावस्या
तीसरा मुख्य शाही स्नान: 14 अप्रैल मेष संक्रांति
चौथा शाही स्नान: 27 अप्रैल बैसाख पूर्णिमा

6 अन्य स्नान

14 जनवरी 2021 मकर संक्रांति

11 फरवरी मौनी अमावस्या

16 फरवरी बसंत पंचमी

27 फरवरी माघ पूर्णिमा

13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (हिन्दी नववर्ष)

21 अप्रैल राम नवमी

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