कोई भूत कोई बिच्छू और कोई सांड इस गांव में ये लोगों के उपनाम हैं.
यूपी के बागपत के गांवों में अनोखे उपनामों की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. ये उपनाम कुलों की पहचान बन गए हैं.
ये उपनाम इन लोगों को अपने पूर्वजों के काम और विशेषताओं के कारण मिले हैं.
जो व्यक्ति कटाई करता था कटाई के बाद भूसी उसके शरीर से चिपक जाती थी, जिससे वह भूत जैसा दिखने लगता था. ऐसे में उसे भूत उपनाम मिल गया. इनके वंशज आज भी भूत नाम से बुलाए जाते हैं.
एक व्यक्ति जो दूसरों से बुरी तरह लड़ता था, उसे बिच्छू कहा गयाऔर उसके वंशज आज भी इसी उपनाम से पहचाने जाते हैं.
एक बौंक के पूर्वजों को अजीब बुखार हुआ और उनका चेहरा लाल हो गया. उन्हें छिपकली की प्रजाति का किरारिया उपनाम मिला. आज गांव में इस उपनाम के 50 परिवार हैं.
इसी तरह चिड़िया, गप्पड़ और घोड़ा कुल भी शामिल हैं. स्थानीय भाषा में इन कुलों को बौंक कहा जाता है.
बागपत का किरथल गांव अपने हीर, रांझा और यहां तक कि मजनू उपनामों के लिए जाना जाता है.
लोगों को इन नामों से कोई दिक्कत नहीं हैं वह इसे अपनी पहचान मानते हैं और अपने पूर्वजों से जुड़े होने का अनुभव करते हैं.
बौंक की व्यवस्था सिर्फ बागपत तक ही सीमित नहीं है. पश्चिमी यूपी के कुछ अन्य जिलों में भी यह परम्परा है.
बिजनौर के एक बौंक को सांड उपनाम मिला हुआ है. यहां आज भी कई सांड परिवार मौजूद हैं.