यूं ही हरक सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता नही दिखाया गया, उनका अचानक दिल्ली जाना और फिर...पढ़ें क्या उत्तराखंड में ऑल इज वेल?
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यूं ही हरक सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता नही दिखाया गया, उनका अचानक दिल्ली जाना और फिर...पढ़ें क्या उत्तराखंड में ऑल इज वेल?

Uttarakhand Politcs 2022: बीते कुछ दिनों से भाजपा में टिकट बंटवारे की कवायद चल रही है. हरक सिंह चाहते थे कि उनकी पुत्रवधू को लैंसडाउन से टिकट मिल जाए.साथ ही स्वयं के लिए वे मनचाही सीट पर दांव खेल रहे थे. इस बीच जब भाजपा में टिकटों को लेकर बैठक का दौर शुरू हुआ तो...

 

 

यूं ही हरक सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता नही दिखाया गया, उनका अचानक दिल्ली जाना और फिर...पढ़ें क्या उत्तराखंड में ऑल इज वेल?

मयंक प्रताप/देहरादून: राजनीतिक लिहाज से यूं तो उत्तराखंड (Uttarakhand) छोटा राज्य है लेकिन यहां भी सियासी खेल खूब होते हैं. इसकी बानगी हम इसी चुनावी वर्ष में देख चुके हैं. कैसे कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य एवं उनके पुत्र संजीव आर्य ने भाजपा (BJP) का दामन थामा कैसे कांग्रेस के पुरोला विधायक राजकुमार भाजपा के खेमे में चले गए. ताजातरीन मामला हरक सिंह रावत (Harak SIngh rawat) का है सत्ताधारी दल के कद्दावर नेता रावत को भाजपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया क्यों.

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अभी हाल ही में हरक सिंह रावत की नाराजगी उस समय सामने आई थी जब धामी कैबिनेट की बैठक चल रही थी. रावत यह कहते हुए बैठक छोड़ गए थे कि उनकी नहीं सुनी जा रही. पूरी रात हरक को मनाने की कोशिश की गई और मान भी गए. रायपुर से विधायक उमेश शर्मा काऊ में अहम भूमिका निभाई. जिसके बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी के साथ हरक सिंह रावत की हंसते ठिठोली करते हुए तस्वीरे सामने आई. कहा गया आल इज वेल. रावत की कोटद्वार में मेडिकल कालेज की मांग मान ली गई है. बात आई गई लगा वाकई रावत मान गए हैं. एक बात मानी गई तो हरक सिंह रावत को लगा सीएम व सरकार उनकी हर बात मान लेगी.

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दरअसल, बीते कुछ दिनों से भाजपा में टिकट बंटवारे की कवायद चल रही है. हरक सिंह चाहते थे कि उनकी पुत्रवधू को लैंसडाउन से टिकट मिल जाए.साथ ही स्वयं के लिए वे मनचाही सीट पर दांव खेल रहे थे. इस बीच जब भाजपा में टिकटों को लेकर बैठक का दौर शुरू हुआ तो हरक सिंह को करारा झटका लगा. लैंसडाउन से केवल एक ही नाम पैनल में भेजा गया और वह नाम है वहां के सिटिंग विधायक महंत दिलीप रावत का. मजेदार बात यह है कि दिलीप रावत का नाम पर किसी और ने नहीं बल्कि पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुहर लगाई. त्रिवेंद्र और हरक सिंह के बीच राजनीतिक अदावत पहले से चली आ रही है. दोनों एक दूसरे के खिलाफ मुखर होकर बयानबाजी करते रहे हैं. इस प्रकरण के बाद यह साफ हो गया था कि हरक सिंह जो चाह रहे हैं वह नही होने वाला.

सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखने वाले सीएम पुष्कर सिंह धामी भी कहां तक धैर्य दिखा पाते पानी सिर से उपर जा रहा था लिहाजा हरक सिंह रावत को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. अब हरक सिंह रावत के भाजपा से बाहर होने के सियासी नफा नुकसान क्या होंगे ये तो आने वाला विधानसभा चुनाव तय करेगा लेकिन भाजपा ने स्टैंड साफ कर दिया कि दबाव बर्दाश्त नही होगा.

हरक सिंह को यूं ही पार्टी से बाहर का रास्ता नही दिखाया गया इसके पीछे उनका अचानक दिल्ली जाना और कुछ खास लोगों से मिलना अहम वजह रही. चर्चा तो यहां तक हुई के रावत की विपक्ष के कुछ बड़े नेताओं से मुलाकात हो चुकी है. ऐसे में भाजपा के पास पहले ही आक्रामक रुख अपनाने के अलावा कोई चारा नही बचा. बता दें कि बीते दिनों कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को भी कुछ इन्ही हालात में सभी पदों से हटा दिया गया था. उनकी भाजपा के नेताओ से गलबहियां पार्टी को रास नही आई थी. अब जिस हरक के लिए भाजपा सरकार सबकुछ कर रही थी पार्टी से नाफरमानी कहां तक रास आती.

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