कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने जिस तरह अचानक भाजपा का दामन छोड़ा वह भाजपा के लिए हतप्रभ करने वाला कदम रहा है. खैर, यशापल के जाते ही भाजपा के दलित विधायक खजान दास, राम चंदन दास और सुरेश राठौर सक्रिय हो गए हैं.
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मयंक राय/देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 (Uttarakhand Assembly Election 2022) से ठीक पहले भाजपा को छोड़ यशपाल आर्य ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था. यशपाल आर्य की कैबिनेट से विदाई के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धांमी ने सूझबूझ दिखाते हुए खाली पड़े पद पर फिलहाल विराम लगा दिया है. लेकिन, राजनैतिक महत्वाकांक्षा वाले इस प्रदेश में भाजपा के नेता शांत बैठे रहेंगे इस पर सवाल जरूर खड़े हो रहे हैं.
ये विधायक हुए एक्टिव
कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने जिस तरह अचानक भाजपा का दामन छोड़ा वह भाजपा के लिए हतप्रभ करने वाला कदम रहा है. खैर, यशपाल के जाते ही भाजपा के दलित विधायक खजान दास, राम चंदन दास और सुरेश राठौर सक्रिय हो गए हैं. यहां सीएम ने परिपक्व रूप दिखाते हुए साफ कर दिया कि यशपाल के पास रहे विभाग सुरक्षित हाथों में यानी उनके पास ही रहेंगे. सीएम ने भले ही सभी को शांत रखने के लिए मास्टर स्ट्रोक खेला हो. लेकिन, कांग्रेस का मानना है कि इससे भाजपा व कांग्रेस मूल के उन विधायकों में असंतोष बढ़ेगा जो बार बार दिल्ली दरबार की परिक्रमा कर रहे हैं.
कांग्रेस सरकार में भी मचा था उथल-पुथल
राजनीतिक लिहाज से बेहद छोटे इस राज्य ने जितनी उथल-पुथल देखी है शायद कम ही प्रदेशों में देखने को मिला होगा. 2016 में हरीश रावत के खिलाफ केवल इसलिए बगावत हुई थी , उस समय सुबोध उनियाल को मंत्री बनाया जाना था. लेकिन, मामला लटका रहा और कई कांग्रेसी भाजपा के साथ हो लिए. त्रिवेंद्र रावत ने भी लम्बे समय तक आठ मंत्रियों से ही काम चलाया और आखिर में वे भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. ऐसे में सीएम ने मामले को थामने की कोशिश जरूर की है.
सूझबूझ से भरे मुख्यमंत्री बड़े बड़े फैसले ले रहे हैं और फैसला लेने में देरी भी नहीं करते. सीएम के द्वारा मंत्रिमंडल विस्तार न करने का निर्णय भी उन्ही फैसलों में से एक है. लेकिन, ये देखना होगा कि मंत्री बनने का ख़्वाब देख रहे भाजपा विधायक किस हद तक अपने सीएम का साथ देते हैं.
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