यूपी का एक ऐसा गांव जिसने देश को दिए 300 से ज्‍यादा शिक्षक, 'मास्‍टरों के गांव' पर किताब भी लिखी जा चुकी
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यूपी का एक ऐसा गांव जिसने देश को दिए 300 से ज्‍यादा शिक्षक, 'मास्‍टरों के गांव' पर किताब भी लिखी जा चुकी

Village of Teacher​ :  इस गांव के पहले सिविल इंजीनियर अकबर हुसैन बने थे. वे भारत-पाक बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए. 1952 के करीब पाकिस्तान में भी उन्होंने बतौर इंजीनियर काम किया. वर्तमान में इस गांव में करीब 50 लोग इंजीनियर हैं. 

यूपी का एक ऐसा गांव जिसने देश को दिए 300 से ज्‍यादा शिक्षक, 'मास्‍टरों के गांव' पर किताब भी लिखी जा चुकी

Village of Teacher​ : यूपी में एक ऐसा गांव है, जिसने अब तक 300 से ज्‍यादा शिक्षक दिए हैं. इसमें प्राइमरी से लेकर प्रधानाध्‍यापक तक शामिल हैं. वहीं, इस गांव की आने वाली पीढ़ी अपने पूर्वजों की इस प्रसिद्धि को कायम रखने में लगी है. इस गांव को मस्‍टरों का गांव भी कहा जाता है. तो आइये जानते हैं यूपी के मास्‍टरों के गांव की पूरी कहानी... 

गांव के इतिहास पर किताब भी लिखी जा चुकी है 
दरअसल, यूपी के बुलंदशहर में सांखनी नाम का एक गांव है. इस गांव ने देश को अब तक 300 से ज्‍यादा पुरुष और महिला शिक्षक दे चुका है. इस गांव के इतिहास को लेकर एक किताब भी लिखी जा चुकी है. इसका नाम तहकीकी दस्‍तावेज है. जिसे गांव के ही पेशे से शिक्षक हुसैन अब्‍बास ने लिखा है. 

ये बने थे गांव के पहले शिक्षक 
बताया गया कि इस गांव के पहले शिक्षक 1880 में तुफैल अहमद बने. वे एक एडेड स्‍कूल में तकरीबन 60 साल 1940 तक शिक्षा दी. इसके बाद गांव के सबसे पहले सरकारी टीचर हुसैन बने. हुसैन इस गांव के सबसे पहले सरकारी टीचर हैं, जो 1905 में अलीगढ़ के शेखुपुर जुंडेरा में बतौर सहायक शिक्षक ज्‍वॉइन किया.  

1271 एकड़ में फैला है यह गांव 
सांखनी गांव में 1876 में पहला मदरसा खोला गया. आज वर्तमान में इस गांव में सरकारी और प्राइवेट मिलाकर कुल 7 विद्यालय हैं. 1271 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस गांव में करीब 600 से 650 घर हैं. जिसकी आबादी 17 से 18 हजार के बीच है. बताया गया कि इस गांव के शिक्षक देशभर के कई राज्‍यों में तैनात रहे हैं. 

महिलाएं भी पुरुषों से कम नहीं 
गांव वालों का कहना है कि पूर्वजों की वजह से ही आज इस गांव के बच्‍चे न केवल शिक्षक बन रहे हैं, बल्कि इंजीनियर, डॉक्‍टर और प्रशासन सेवाओं में जा रहे हैं. वर्तमान में इस गांव से 60 से 70 बच्‍चे गेस्ट टीचर, ट्यूटर और स्‍पेशल एजुकेटर बन चुके हैं. इस गांव की महिलाएं भी कम नहीं है. पुरुषों के बराबर की संख्‍या में इस गांव की औरतें सरकारी क्षेत्र में सेवा दे रही हैं. 

विदेश में चिकित्‍सा क्षेत्र में दे रहे सेवा 
इस गांव के पहले सिविल इंजीनियर अकबर हुसैन बने थे. वे भारत-पाक बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए. 1952 के करीब पाकिस्तान में भी उन्होंने बतौर इंजीनियर काम किया. वर्तमान में इस गांव में करीब 50 लोग इंजीनियर हैं. वहीं, डॉक्टरी पेशे में लोग विदेश में भी सेवा दे रहे हैं. इसके अलावा वकील, पीएचडी छात्रों की संख्‍या भी अधिक है. 

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