भाजपा के लिहाज से ठीक चुनाव से पहले यशपाल और बेटे संजीव की विदाई बड़े झटके के रूप में देखी जा रही है. माना जा रहा है कि अंदरखाने बीजेपी अब अपनी कमजोर कड़ियों को संभालने में लग गई है. हालांकि, भाजपा फिलहाल ऐसे किसी भी नुकसान से इनकार कर रही है...
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देहरादून: भाजपा सरकार में मंत्री रहे यशपाल आर्य के जरिए कांग्रेस दलित राजनीति करने का प्लान कर रही है. साल 2017 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव ने दोबारा कांग्रेस में एंट्री कर ली है. सूबे की राजनीति में बड़े दलित नेता के तौर पर पहचान रखने वाले आर्य आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को कितना फायदा दिला पाएंगे, यह तो वक्त तय करेगा. फिलहाल, इस पर राजनीतिक चर्चा जरूर होने लगी है.
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दलित वोट बैंक में कांग्रेस की सेंधमारी
उत्तराखंड की तराई बेल्ट की बात करें या फिर गढ़वाल और कुमाऊं मंडल की, राज्य में 19 से 22 सीटें ऐसी हैं, जहां दलित वोट मायने रखता है. कांग्रेस के पास अब तक दलित चेहरे के नाम पर प्रदीप टम्टा ही थे, लेकिन अब यशपाल के आने से कांग्रेस दलित वोटों में बड़ी सेंधमारी कर सकती है. कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना इस तरफ इशारा भी कर रहे हैं. सूबे की राजनीति की अच्छी समझ रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक राजीव नयन बहुगुणा भी मानते हैं कि यशपाल का यश कांग्रेस के काम आ सकता है.
डबल इंजन के दम पर भाजपा जीतेगी चुनाव- देवेंद्र भसीन
भाजपा के लिहाज से ठीक चुनाव से पहले यशपाल और बेटे संजीव की विदाई बड़े झटके के रूप में देखी जा रही है. माना जा रहा है कि अंदरखाने बीजेपी अब अपनी कमजोर कड़ियों को संभालने में लग गई है. हालांकि, भाजपा फिलहाल ऐसे किसी भी नुकसान से इनकार कर रही है. पूर्व दर्जाधारी मंत्री और प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स की मानें तो अगर कांग्रेसी मानते हैं कि अससे उनके वोट बढ़ेंगे, तो वे दिन में सपने देख रहे हैं. इसी के साथ, डॉ. देवेंद्र भसीन , प्रदेश उपाध्यक्ष , बीजेपी का कहना है कि 2017 का चुनाव बीजेपी पीएम मोदी और संगठन के दम पर जीती और इस बार का चुनाव भी बीजेपी डबल इंजन के दम पर जीतेगी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पहले अपने अंदरूनी झगड़े सुलझा ले.
कांग्रसी नेताओं पर था भाजपा को भरोसा- गोदियाल
वहीं, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का कहना है कि बीजेपी ने 5 साल सरकार चलाई. उन्हें अपने काम पर विश्वास होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है. बल्कि, खुद से ज्यादा उन्हें कांग्रेस के नेताओं पर विश्वास है कि कांग्रेस के नेता आएंगे और उनकी नैया पार लगाएंगे. लेकिन, इस बार ऐसा कुछ नहीं होने वाला है.
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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले अब जो खेल शुरू हो चुका है, वह चुनाव आते-आते किस मोड़ तक जा पहुंचेगा फिलहाल कहना मुश्किल है. लेकिन, इतना जरूर है कि जनहित की दुहाई देते हुए, निजी स्वार्थों के लिए, सफेदी के दलबदल की और भी कई तस्वीर देवभूमि के दंगल में देखने को मिलेगी. बहरहाल, कांग्रेस को इस सियासी दांव से कितना लाभ मिलेगा ये तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन यह जरूर है कि मुकाबला फिलहाल दिलचस्प नजर आने लगा है.
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