"जो पहले उड़ाते थे मजाक अब पद्मश्री मिलने के बाद कर रहे सम्मान": डॉक्टर सेठपाल
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"जो पहले उड़ाते थे मजाक अब पद्मश्री मिलने के बाद कर रहे सम्मान": डॉक्टर सेठपाल

पद्म श्री से सम्मानित सहारनपुर जिले के किसान डॉक्टर सेठपाल ने कृषि विविधीकरण में नए आयाम पेश किए हैं. उन्होंने प्रदेश के किसानों के सामने बहुत बड़ी मिसाल कायम की है. आज हम आपको बता रहे हैं उनके कृषि करने का तरीका, जिसके जरिए उन्होंने मुश्किल लगने वाले काम को भी कर दिखाया. 

"जो पहले उड़ाते थे मजाक अब पद्मश्री मिलने के बाद कर रहे सम्मान": डॉक्टर सेठपाल

नीना जैन/सहारनपुरः सहारनपुर जिले के नंदीपुर गांव के निवासी प्रगतिशील किसान डॉक्टर सेठपाल सिंह को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया है. वह पिछले कई सालों से कृषि में नए आयाम स्थापित करने में प्रयोग कर किसानों को प्रेरित कर रहे हैं.  इससे पहले उन्हें कृषि विविधीकरण के क्षेत्र में खास योगदान देने के लिए राष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है. 

डॉक्टर सेठपाल ने कहा "पद्म श्री मिलना एक सपने जैसा है. इसे पाकर मेरा परिवार, गांव, जिला, कृषि विभाग, उद्यान विभाग, गन्ना विभाग, कृषि विज्ञान केंद्र सभी बहुत खुश हैं. हम महामहिम राष्ट्रपति का दिल की गहराइयों से आभार व्यक्त करते हैं. यह एक बहुत लंबा सफर था. दरअसल, हमारा परिवार का बेस कृषि ही है, पिताजी खेती करते थे, इसीलिए शुरू से जुड़ा रहा है". 

ऐसे हुई कृषि विविधीकरण की शुरुआत
शहर से मेडिकल की पढ़ाई कर सेठपाल गांव आए और यहीं प्रैक्टिस शुरू की. उन्होंने बताया "गांव में आने के बाद उनकी भाभी अंजली चौधरी ग्राम प्रधान बनीं. इस दौरान किसान सहायक इंद्रपाल सिंह तोमर से मुलाकात हुई. वह गेंहू और गन्ना का उत्पादन करते थे. उन्होंने कृषि विविधीकरण के बारे में बताया और 1995 में हम इससे जुड़ गए. शुरुआत में जब हमने कृषि में नए प्रयोग किए तो लोगों ने हमारा मजाक उड़ाया. यह कहा कि ये गन्ना और गेहूं उगाएंगे. धीरे-धीरे हम कृषि, उद्यान और गन्ना विभाग से जुड़ते गए और तकनीकी जानकारी लेते गए". 

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कृषि विज्ञान केंद्र की मिली सहायता
उन्होंने बताया "कृषि विविधीकरण सिखाने में कृषि विज्ञान केंद्र का बहुत सहयोग रहा. 1996 में हमने अपने खेत में डेढ़ फुट धान के ठूठ पर सीधी बुवाई कर दी और खरपतवार में दवाई डाली उसके बाद जो फसल हुई वह रिकॉर्ड तोड़ थी. इसी के फलस्वरूप उन्हें सम्मानित किया गया. 6 हजार रुपये की नगद राशि प्राप्त हुई". इसके बाद उनका हौसला बढ़ता चला गया. उन्होंने दलहन और तिलहन फसलों का खेती में समावेश किया. दवाई का उपयोग कम से कम किया. इतना ही नहीं सिंघाड़ा जो तालाब में ही पैदा हो सकता है, उसे खेतों में उगाया. 

नामुमकिन काम को ऐसे किया मुमकिन
सेठपाल ने बताया "साल 1997 में सिंघाड़े की खेती के लिए खेत की मेड़ को मजबूत बनाया और उसमें पानी भरा. जिस तरह से धान के लिए खेत बनाते हैं, ऐसे ही सिंघाड़े के लिए खेत तैयार किया. इसमें भरा गया 1 फीट पानी कड़ी गर्मी में 6 इंच तक रह कर गर्म हो जाता था. गर्मी में 2-3 घंटे पानी देने पर इस समस्या का समाधान हो जाता था और फिर देखते ही देखते जुलाई में खेत पूरी ब्रांच से भर गया". उन्होंने बताया कि उनके सिंघाड़े की फसल इतनी बेहतर है कि जो चख लेता है वह निश्चित ही सिंघाड़ा खरीदता है.

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कृषि अवशेष भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं
कृषि विविधीकरण के नए-नए प्रयोग करने वाले सेठपाल ने बताया कि वह कभी भी खेती का अवशेष नहीं हटाते हैं. यह जमीन की उर्वरा शक्ति हैं. इतना ही नहीं जो खेती के पेड़ पत्ते उसमें कंपोज होते हैं, उससे जमीन की उर्वरा शक्ति इतनी बढ़ जाती है कि वह और बेहतर फसल हमें देती है. उन्होंने बताया कि उन्होंने खेत में ही तालाब बनाकर उसमें मछली पालन भी किया. उसमें रोहू, नैन और कतरा तीन प्रकार की मछलियां पाली, लेकिन बाद में मछली पालन बंद कर दिया. 

कृषि विविधीकरण आय बढ़ाने का बेहतर जरिया 
उन्होंने उसी तालाब में कमल के फूल लगाए. जिससे उन्हें कमल ककड़ी और कमल कट्टा भी मिला. वह साधारण खेती करने के साथ-साथ करेला, मसूर की दाल, मशरूम, प्याज, लहसन, टिंडा, अमरूद, आलू और हल्दी आदि की भी पैदावार करते हैं. उनका मानना है कि केवल गेहूं और गन्ने की फसल पर निर्भर रहना किसान के लिए घाटे का सौदा है. किसान को अपना परिवार भी चलाना है और अपने बच्चों को पढ़ाना भी होता है. ऐसे में उन्हें कृषि विविधीकरण को अपनाना चाहिए. इस तरह से अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं.

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इस तरह तैयार करते हैं जैविक कंपोस्ट
उन्होंने कहा कि परंपरागत खेती से हटकर कृषि विविधीकरण की ओर अग्रसर होना चाहिए और उन्हें इस बात की खुशी है कि लोग उनसे फोन द्वारा कृषि के विविधीकरण संबंधित जानकारी लेते हैं और उनके मार्ग पर अग्रसर है. उन्होंने गेहूं और गन्ने के अवशेष के बारे में कहा कि कृषि अवशेष जलाने की जरूरत नहीं है. इसे वह जानवरों के बैठने की जगह पर नीचे बिछा देते हैं. जिससे जानवरों का सर्दी से बचाव होता है, तो वहीं इस पर उनका गोबर और यूरिन डालने से इसे वह कंपोस्ट करते हैं और खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं. 

नवाजे जा चुके हैं इन पुरस्कारों से
साल 2012 में सेठपाल को आईसीएआर से नवोन्मेषी कृषक सम्मान, आईसीएआर से ही साल 2014 में जगजीवन राम अभिनव पुरस्कार और साल 2020 में अध्येता पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

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