यूपी के इस गांव में नहीं होता रावण दहन और न ही रामलीला, ग्रामीण मानते हैं पूर्वज करते हैं लंकेश की पूजा
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यूपी के इस गांव में नहीं होता रावण दहन और न ही रामलीला, ग्रामीण मानते हैं पूर्वज करते हैं लंकेश की पूजा

Dussehra 2021:  यहां रावण को लेकर लोगों के मन मे आस्था है. यहां के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं. आज तक गांव में न तो रामलीला का मंचन हुआ और न दशहरा पर पुतला दहन. दशहरे पर यहां के ग्रामीण घरों में आटे का रावण बनाकर उसकी पूजा करते हैं. 

यूपी के इस गांव में नहीं होता रावण दहन और न ही रामलीला, ग्रामीण मानते हैं पूर्वज करते हैं लंकेश की पूजा

गौतमबुद्धनगर: उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर में देश की राजधानी दिल्ली से महज 22 किलोमीटर दूर बागपत के खेकड़ा तहसील में रावण गांव उर्फ बड़ागांव में ना तो रामलीला होती है और ना रावण के पुतले का दहन होता है. यहां रावण को लेकर लोगों के मन मे आस्था है. यहां के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं. आज तक गांव में न तो रामलीला का मंचन हुआ और न दशहरा पर पुतला दहन. दशहरे पर यहां के ग्रामीण घरों में आटे का रावण बनाकर उसकी पूजा करते हैं. 

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बड़ागांव उर्फ रावण के नाम से दर्ज है गांव
खेकड़ा तहसील का यह गांव राजस्व अभिलेखों में भी बड़ागांव उर्फ रावण के नाम से दर्ज है. करीब 12 हजार आबादी वाले गांव में सिद्धपीठ मां मंशा देवी का मंदिर हैं. इसी मंदिर के कारण गांव का नाम रावण पड़ा. ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीराम पर विजय पाने के लिए रावण ने हिमालय पर मां मंशा देवी की घोर तपस्या की. तपस्या से खुश होकर मां शक्तिपुंज के रूप में रावण के साथ लंका जाने के लिए तैयार हो गईं.  मां ने रावण के सामने शर्त रखी थी कि शक्तिपुंज जहां भी रख देगा, वह उसी स्थान पर विराजमान हो जाएंगी.

मां मंशा देवी की मूर्ति स्थापित
रावण को बड़ागांव के पास उसे लघुशंका लगी. वह मां की मूर्ति को एक ग्वाले को देकर लघुशंका के लिए चला गया. ग्वाला मां के तेज को सहन नहीं कर सका और शक्तिपुंज को जमीन पर रख दिया. इसके बाद मां अपनी शर्त के मुताबिक वहीं विराजमान हो गईं. मूर्ति स्थापना को लेकर विशेष शर्त थी कि पहली बार मूर्ति जहां रखी जाएगी वहीं स्थापित हो जाएगी. इस कारण मां की मूर्ति इस गांव में स्थापित हो गई. 

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मूर्ति स्थापित होने के बाद रावण ने कुंड खोदा, स्नान के बाद किया तप
रावण ने मूर्ति स्थापित होने के बाद यहां एक कुंड खोदा और उसमें स्नान के बाद तप किया. इस कुंड का नाम रावण कुंड है. इसके बाद ही गाव का नाम रावण पड़ गया. रावण के प्रति यहा के लोगों में काफी श्रद्धा है. इसलिए गाव में न तो कभी रामलीला हुई और न दशहरे पर रावण के पुतले का दहन. 

रावण को अपना पूर्वज मानते हैं ग्रामीण
यहां के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं. रावण के कारण ही मां मंशादेवी गांव में विराजमान है. मां उनकी मन्नत पूरी करती हैं. गांव के रहने वाले बुजुर्गों के मुताबिक एक-दो बार गांव में रामलीला मंचन और रावण पुतला दहन किया गया था. इसके बाद कई सारी विपदाएं आईं. इसके बाद गांव में दशहरा और रामलीला मंचन नहीं किया गया.

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