कांग्रेस के बागी नेताओं से नाराज दिखे हरीश रावत, फेसबुक पोस्ट कर निकाला अपना गुस्सा
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कांग्रेस के बागी नेताओं से नाराज दिखे हरीश रावत, फेसबुक पोस्ट कर निकाला अपना गुस्सा

"कांग्रेस तो उदार पार्टी है. यदि कोई अपने अपराध के लिए क्षमा मांगे तो माफ भी किया जा सकता है. जो अपने पारिवारिक कारणों या वैचारिक मतभेद के कारण से गए हैं, उनके साथ वैचारिक मतभेदों को पाटा जा सकता है..."

कांग्रेस के बागी नेताओं से नाराज दिखे हरीश रावत, फेसबुक पोस्ट कर निकाला अपना गुस्सा

राहुल मिश्रा/देहरादून: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हरीश रावत ने एक बार फिर फेसबुक पोस्ट कर फिर चर्चाओं में आ गए हैं. अब विधानसभा चुनाव 2022 से कुछ महीने पहले ही हरीश रावत ने कांग्रेस के बागी नेताओं पर निशाना साधा है. उन्होंने फेसबुक पोस्ट कर कुछ बड़ी बातें लिखीं. 

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"इन 3 कारणों से लोग बदलते हैं दल"
हरीश रावत ने पोस्ट कर लिखा, "दल-बदल के 3 कारण हो सकते हैं-
पहला वैचारिक कारण, 
दूसरा पारिवारिक कारण और 
तीसरा कारण आर्थिक या पदों का प्रलोभन.
उत्तराखंड में कुछ लोगों ने पारिवारिक कारणों से, कुछ ने वैचारिक मतभेदों के बहुत गहरे होने के कारण दल बदले हैं. लेकिन दो-तीन को छोड़कर अधिकांश लोगों ने धन  और पद के प्रलोभन के कारण दल-बदल किया और इस बात के गवाह कई लोग हैं." वहीं, हरीश रावत ने आगे कहा कि "जो धन और पद प्रलोभन के आधार पर दलबदल हुए, वह सामाजिक, राजनैतिक अपराध के अंतर्गत आते हैं. वह लोग संसदीय लोकतंत्र पर कलंक हैं."

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भाजपा के लिए कही यह बड़ी बात
हरीश रावत आगे लिखते हैं, "ऐसा अपराध जिस दल से दल-बदल होता है, वो दल तो केवल एक बार रोता है. और जिस दल में वो लोग जाते हैं, वो दल कई-कई बार रोता है. अभी तो भाजपाई लोग केवल रो रहे हैं और देखिएगा आगे आने वाले दिनों में कुछ खांठी के भाजपाई, संघी सब खून के आंसू रोएंगे. 

कांग्रेस को बताया उदार पार्टी
हरीश रावत का कहना है कि "कांग्रेस तो उदार पार्टी है. यदि कोई अपने अपराध के लिए क्षमा मांगे तो माफ भी किया जा सकता है. जो अपने पारिवारिक कारणों या वैचारिक मतभेद के कारण से गए हैं, उनके साथ वैचारिक मतभेदों को पाटा जा सकता है. मगर भाजपा की स्थिति तो यह है, जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाएं!" 

 "बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से खाएं"
हरीश रावत यहीं नहीं रुके. उन्होंने आगे लिखा, "जो पार्टी अपने अनुशासन की प्रशंसा करते नहीं अघाती थी, आज चौराहे पर उनके अनुशासन की धज्जियां उड़ रही हैं. संघ की शिक्षा की भी धज्जियां उड़ रही हैं. अभी तो शुरुआत है. देखिए आगे क्या होता है! मगर मैं उत्तराखंड से भी कहना चाहता हूं कि ये जो "बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से खाएं" वाली कहावत है, ये राज्य और समाज पर भी लागू होती है. यदि आप ऐसे आचरण के लिए कथित जनप्रतिनिधियों को दंडित नहीं करेंगे तो उसका दुष्प्रभाव, राज्य की राजनीति में अस्थिरता लाएगा और अस्थिरता का दुष्प्रभाव का राज्य के विकास को भुगतना पड़ता है, जनकल्याण को भुगतना पड़ता है और आज उत्तराखंड वही भुगत रहा है."

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