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नई दिल्ली: जनता का मन कब पलट जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. इसलिए तो कई बार ऐसे अप्रत्याशित नतीजे आते हैं, जिनका अंदाजा अच्छे से अच्छे राजनीतिक पंडित भी नहीं लगा पाते हैं. ऐसा ही एक चुनाव हुआ था यूपी के एटा जनपद में निधौलीकलां (वर्तमान में मारहरा) विधानसभा सीट में. इस सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद रोचक रहा है. इस सीट का दखल लखनऊ की राजनीति में भी रहा है और यह सीट अपने मतदाताओं के अलग मिजाज के कारण भी जानी जाती है.
2012 में हुए परिसीमन के बाद मारहरा सीट बने निधौलीकलां ने 70 के दशक में ऐसा कारनामा किया कि हर चुनावों में लोग उसकी याद जरूर कर लेते हैं. दरअसल, 1977 में जब अप्रत्याशित रूप से राम नरेश यादव को यूपी का सीएम बनाया गया तो उपचुनाव में उन्हें निधौलीकलां से ही मैदान में उतारा गया था. जनता ने उन्हें भारी मतों से जिताया लेकिन जब 2 साल बाद वही राम नरेश यादव सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद इस सीट से लड़े तो हार गए. जनता ने उन्हें बेताज कर दिया.
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राम नरेश यादव के सीएम बनने का झटका कई लोगों को लगा था क्योंकि कई लोगों पर उन्हें तरजीह देकर यह कुर्सी दी गई थी. लेकिन उससे भी गजब वाकया तो तब हुआ जब वे दिल्ली से लखनऊ लौटे. दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान ने एक लिफाफा उन्हें दिया था और उसे राजभवन पहुंचाने के लिए कहा था. अगले दिन यादव को सीएम पद की शपथ लेनी थी लेकिन इसकी खबर न के बराबर लोगों को थी. लखनऊ मेल से उतरकर राम नरेश यादव ने रिक्शा पकड़ा और राजभवन जाने लगे. रास्ते में उन्हें आकाशवाणी के समाचार निदेशक मुन्नी लाल ने रोक लिया और अपनी एंबेसडर कार से राजभवन चलने के लिए कहा. लेकिन यादव नहीं माने और रिक्शे से ही राजभवन गए. फिर उसी दिन शाम को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ली.
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1977 में सीएम बने राम नरेश यादव को 2 साल बाद ही इस्तीफा देना पड़ा. कमाल की बात ये रही कि अपना इस्तीफा देने भी वे रिक्शे से गए और उसके बाद रिक्शे से ही अपने घर वापस गए. हालांकि निधौलीकलां में मिली हार के बाद भी राम नरेश यादव ने लंबी राजनीतिक पारी खेली. वे राज्यसभा के सदस्य भी बने और मध्य प्रदेश के राज्यपाल भी बने.
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